यूपी सरकार बिजली उपभोक्ताओं से सालाना कमा रही करीब 9000 करोड़

Lucknow: उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन (UPPCL) के अनुसार विभाग एक लाख करोड़ से अधिक के घाटे में है। अभी सरकार सालाना 16500 करोड़ टैरिफ सब्सिडी (Tariff Subsidy) देती है जो आगे नहीं देना चाहती। इसलिए निजीकरण करना बेहद जरूरी है। मगर हकीकत यह नहीं जो कारपोरेशन बता रहा है। सच्चाई यह है कि सरकार के खजाने में सालाना बिजली उपभोक्ताओं से 3000 से 4000 करोड़ रुपये इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी जमा होती है।
विभिन्न योजनाओं में खर्च होने वाले बजट और स्टीमेट की धनराशि पर लगने वाली जीएसटी (GST) के मद में भी सालाना 5000 करोड़ रुपये तक जमा हो जाते हैं। यूपी के 42 जिलों के निजीकरण (Privatization) को लेकर बयानबाजी तो चल रही है मगर टेंडर अभी तक जारी नहीं किया गया है। कारपोरेशन की ओर से विद्युत नियामक आयोग में अभी तक निजीकरण का कोई प्रस्ताव पेश नहीं किया गया है। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा का कहना है कि अडानी, टाटा, नोएडा पावर कंपनी, टोरेंट पावर समेत देश के कई निजी घराने यूपी के जिलों की विद्युत व्यवस्था पाने के लिए कोशिश कर रहे हैं।
वर्मा ने कहा कि पावर कारपोरेशन का बयान है कि सरकार घटा वहन करने को तैयार नहीं है। पीसीएल की बात मानें तो सरकार टैरिफ सब्सिडी के रूप में लगभग 16500 करोड़ रुपये देती है। इसी प्रकार लगभग लॉस सब्सिडी के रूप में भी कुछ धन सालाना उपलब्ध कराया जाता है। इसके विपरीत प्रदेश सरकार के खजाने में इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी (Electricity Duty) के रूप में उपभोक्ता 3000 से 4000 करोड़ रुपया जमा करते हैं।
उपभोक्ताओं के इस्टीमेट कनेक्शन चार्ज और अन्य मद में भी 4000 से 5000 करोड़ रुपये के बीच में जीएसटी भी सरकार के खाते में जाती है। ऐसे में यह कहना सरकार के लिए घटा वहन करना मुश्किल हो रहा है तो यह गलत है। सरकार को इनर्जी सेक्टर से कमाई भी हो रही है।
UPPCL ने की कर्ज लेने की तैयारी
यूपी में बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए पावर कॉरपोरेशन खर्चों को पूरा करने के लिए बैंक से सात साल का कर्ज मांग रहा है। कारपोरेशन ने अगले 7 वर्षों के लिए पीएफसी (PFC) से 2000 करोड़ और इंडियन ओवरसीज बैंक (Indian Overseas Bank) से 400 करोड़ रुपये का कर्ज लेने का फैसला लिया है। बिजली कम्पनियों के नाम पर कर्ज मांग रहा कारपोरेशन प्रबंधन दक्षिणांचल व पूर्वांचल को बेचने की बात कर रहा है।
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने सवाल उठाया कि अगर कम्पनी को बेचना ही है तो उस पर कर्ज कैसे लिया जा सकता है। वर्मा ने कहा कि एक करोड़ 70 लाख विद्युत उपभोक्ताओं वाली दो बिजली कम्पनियां को बेचने से पहले यह तय किया जाना चाहिए कि उनके नाम पर कर्ज लिया जाना क्या न्यायसंगत है।