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उत्‍तर प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों के मर्जर का रास्‍ता साफ, हाई कोर्ट ने याचिका खारिज की

LUCKNOW: उत्तर प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों के विलय (मर्जर) को लेकर दायर याचिकाओं को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने खारिज कर दिया है। इस फैसले के साथ ही राज्य सरकार की प्राथमिक विद्यालयों को उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में समाहित करने की योजना को हरी झंडी मिल गई है। यह निर्णय शिक्षा विभाग के 16 जून 2025 के उस आदेश को लागू करने का मार्ग प्रशस्त करता है, जिसके तहत कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक विद्यालयों को पास के स्कूलों में मर्ज किया जाना है।

याचिकाओं का आधार और कोर्ट में सुनवाई

सीतापुर जिले के 51 स्कूली बच्चों और अन्य याचिकाकर्ताओं, जिनमें कृष्णा कुमारी शामिल थीं, ने हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की थीं। इन याचिकाओं में दावा किया गया था कि सरकार का यह मर्जर आदेश ‘मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009’ (RTE Act) का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता डॉ. एल.पी. मिश्र और गौरव मेहरोत्रा ने तर्क दिया कि स्कूलों के विलय से छोटे बच्चों को दूर के स्कूलों तक जाना पड़ेगा, जिससे उनकी शिक्षा में बाधा और सुरक्षा संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को कम छात्र संख्या वाले स्कूलों का स्तर सुधारने का प्रयास करना चाहिए, न कि उन्हें बंद करने या मर्ज करने का आसान रास्ता अपनाना चाहिए।

दूसरी ओर, राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता अनुज कुदेसिया, मुख्य स्थायी अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार सिंह और निदेशक बेसिक शिक्षा के अधिवक्ता संदीप दीक्षित ने कोर्ट में पक्ष रखा। सरकार ने दलील दी कि यह निर्णय बच्चों के हित और संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए लिया गया है। उन्होंने कहा कि कई स्कूलों में छात्रों की संख्या न के बराबर है, और कुछ स्कूलों में तो एक भी छात्र नामांकित नहीं है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि मर्जर का अर्थ स्कूलों को बंद करना नहीं है, बल्कि उनकी ‘पेयरिंग’ करना है, जिससे शिक्षकों, भवनों और डिजिटल सुविधाओं का बेहतर उपयोग हो सके।

न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 4 जुलाई 2025 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा था कि क्या मर्जर से पहले कोई सर्वेक्षण किया गया था, और यदि हां, तो उसकी रिपोर्ट पेश की जाए। शुक्रवार को पूरी तैयारी के साथ सरकार ने अपना पक्ष रखा, जिसके बाद कोर्ट ने याचिकाओं को खारिज कर दिया।

सरकार की दलील: संसाधनों का बेहतर उपयोग

उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने पक्ष में कहा कि राज्य में लगभग 58 स्कूल ऐसे हैं जहां एक भी छात्र नामांकित नहीं है, और करीब 5,000 स्कूलों में छात्रों की संख्या बहुत कम है। इन स्कूलों में संसाधनों का उपयोग प्रभावी ढंग से नहीं हो पा रहा था। सरकार का कहना है कि मर्जर नीति से शिक्षकों की उपलब्धता, स्कूलों की गुणवत्ता और डिजिटल सुविधाओं में सुधार होगा। सरकार ने यह भी आश्वासन दिया कि मर्जर के बाद किसी भी बच्चे की शिक्षा बाधित नहीं होगी और न ही किसी शिक्षक को सेवा से हटाया जाएगा।

याचिकाकर्ताओं और विपक्ष का विरोध

याचिकाकर्ताओं और शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह मर्जर नीति ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की पहुंच को सीमित कर सकती है। उनका तर्क है कि स्कूलों के विलय से छोटे बच्चों को 3 से 5 किलोमीटर तक की दूरी तय करनी पड़ सकती है, जो गरीब परिवारों के लिए व्यवहारिक नहीं है। इससे ड्रॉपआउट दर बढ़ने और शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका है। उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ और कांग्रेस पार्टी ने इस निर्णय के खिलाफ कई जिलों में विरोध प्रदर्शन भी किए थे। पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी लखनऊ में विधानसभा भवन का घेराव कर इस नीति को वापस लेने की मांग की थी।

1 मतदाता के लिए बूथ तो बच्‍चों के लिए स्‍कूल क्‍यों नहीं 

समाजवादी पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अखिलेश यादव ने सरकार के द्वारा किए जा रहे स्‍कूलों के मर्जर पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि “शिक्षा ही विकास की सबसे बड़ी कसौटी होती है। भाजपा सरकार में शिक्षा और शिक्षकों की जो उपेक्षा हो रही है उसके पीछे एक गहरी साज़िश की ये आशंका बलवती हो रही है कि :

– भाजपा आनेवाली पीढ़ी से ‘शिक्षा का अधिकार’ छीनना चाहती है।
– ⁠जो शिक्षित होता है वह सकारात्मक भी होता है और सहनशील भी, ऐसे लोग भाजपा की नकारात्मक राजनीति को कभी भी स्वीकार नहीं करते हैं।
– ⁠शिक्षा से ही उनमें चेतना आती है और वो उत्पीड़न व शोषण के ख़िलाफ़ एकजुट हो जाते हैं।
– ⁠शिक्षा से जो आत्मविश्वास आता है वह भाजपा जैसे वर्चस्ववादी दल के विरोध का कारण बनता है, इसीलिए न होंगे स्कूल, न होगा भाजपा का विरोध।
– ⁠आज गाँवों में स्कूल बंद होंगे कल को भाजपा के संगी-साथी सेवा के नाम पर अपने स्कूल वहाँ खोलने के लिए पहुँच जाएँगे। जिससे वो अपनी दरारवादी सोच के बीज बो सकें।

अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर लिखा कि अपनी प्रभुत्ववादी सोच को बनाए रखने के लिए अशिक्षित व अवैज्ञानिक लोगों की ताली बजाती, थाली पीटती अनपढ़ों की भीड़ चाहती है। नकारात्मक सोच के लिए प्रभुत्ववादी, घोर स्वार्थी व अनपढ़ों का समर्थन चाहिए होता है। सच में शिक्षित व परमार्थ से प्रेरित एक चैतन्य व जागरूक व्यक्ति कभी भी भाजपा जैसी सोच का समर्थक नहीं हो सकता है। जितनी शिक्षा प्रसारित होगी उतनी ही भाजपाई राजनीति की जड़ कमज़ोर होगी।

सब जानते हैं कि जो चीज निगाह से दूर हो जाती है, वो दिमाग़ से भी दूर हो जाती है। जब आसपास स्कूल ही नहीं दिखेंगे तो शिक्षा की साक्षात प्रेरणा ही समाप्त हो जाएगी। हमारा तर्क ये है कि जब 1 मतदाता के लिए बूथ बनाया जा सकता है तो 30 बच्चों के लिए स्कूल चलाया क्यों नहीं जा सकता है।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर इस फैसले को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। कई यूजर्स ने इसे ‘चिलम बनाम कलम’ की लड़ाई करार देते हुए सरकार के फैसले की आलोचना की। एक यूजर ने लिखा, “प्राथमिक विद्यालय मर्ज होंगे, बच्चों को न सरकार का सहारा मिला न कोर्ट का।” कुछ ने इसे शिक्षा के अधिकार के खिलाफ कदम बताया, जबकि अन्य ने सरकार की जीत को संसाधनों के बेहतर प्रबंधन की दिशा में कदम माना।

आगे की राह

इस फैसले के बाद अब उत्तर प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों का मर्जर प्रक्रिया तेज होने की संभावना है। हालांकि, विपक्षी दलों और शिक्षक संगठनों ने इस निर्णय के खिलाफ आगे भी आंदोलन जारी रखने की बात कही है। यह मामला न केवल शिक्षा व्यवस्था, बल्कि लाखों बच्चों के भविष्य को प्रभावित करने वाला है। कोर्ट के इस फैसले से जहां सरकार को अपनी नीति लागू करने का रास्ता साफ हो गया है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता पर इसके प्रभाव को लेकर बहस जारी रह सकती है।

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