KGMU: शिशु को बचा सकतें है स्पाइना बिफिडा सिंड्रोम से : डॉ. संतोष जे. करमाकर
शिशु के लिए खतरनाक है स्पाइना बिफिडा सिन्ड्रोम

Lucknow: गर्भ में पल रहे शिशु को स्पाइना बिफिडा सिन्ड्रोम से बचाया जा सकता है। इसमें रीढ़ की हड्डी बाहर निकल आती है। इसका मुख्य कारण विटामिन की कमी है। अगर महिला गर्भधारण के पहले से ही डॉक्टर की सलाह पर नियमित रूप से विटामिन की गोलियां लें, तो इस बीमारी की आशंका काफी हद तक कम किया जा सकता है। मुंबई के पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. संतोष जे. करमाकर ने यह जानकारी दी।
डॉ. संतोष शनिवार को केजीएमयू (KGMU) पीडियाट्रिक सर्जरी (Pediatric Surgery) विभाग के 27वें स्थापना दिवस समारोह में बोल रहे थे। स्पाइना बिफिडा (Spina Bifida) के प्रबंधन में बहु-विषयक दृष्टिकोण: निदान से पुनर्वास तक विषय पर आयोजित सीएमई में उन्होंने बताया कि स्पाइना बिफिडा एक न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट है, जिसमें गर्भ में शिशु की रीढ़ की हड्डी पूरी तरह विकसित नहीं हो पाती। इससे हड्डी में छेद बन जाता है और नसें बाहर निकल सकती हैं। इसका असर मांसपेशियों की कमजोरी, पैरों में लकवा, संवेदना खत्म होने और मल-मूत्र पर नियंत्रण न रहने के रूप में दिखता है। हालांकि सर्जरी और थेरेपी से इलाज संभव है।
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कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष डॉ. जे.डी. रावत ने बताया कि आयरन और विटामिन की कमी वाली माताओं से जन्म लेने वाले शिशुओं में इसका खतरा अधिक होता है। यदि गर्भधारण से दो महीने पहले से ही महिला विटामिन की गोलियां लेना शुरू कर दे, तो बीमारी का खतरा 80 प्रतिशत तक घट जाता है।
एम्स पटना के डॉ. दिगंबर चौबे ने कहा कि गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड जांच से भी इस बीमारी की पहचान की जा सकती है। शुरुआती गर्भावस्था में समस्या सामने आने पर गर्भपात की सलाह दी जाती है, जबकि जन्म के बाद बच्चे की सर्जरी और उसके बाद रिहैबिलिटेशन की आवश्यकता पड़ती है।
समारोह में यूपी मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. अजय कुमार सिंह ने केजीएमयू को एनआईआरएफ रैंकिंग और नैक में ए डबल प्लस ग्रेड मिलने पर बधाई दी। कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद ने विभाग में उत्कृष्ट कार्य करने वाले कर्मचारियों को सम्मानित किया। इस मौके पर डॉ. वीरेंद्र आतम, डॉ. आनंद पांडेय और डॉ. अर्चिका गुप्ता समेत कई डाक्टर मौजूद रहे।