रसायनिक खाद से जहरीले हो रहे फल व सब्जियां

Lucknow: फसल में रसायनिक खाद (Chemical fertilizers) का इस्तेमाल सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है। इनके प्रयोग से सब्जियां व फल जहरीले हो रहे हैं। इसकी वजह से लोगों में दिल, डायबिटीज, व किडनी समेत दूसरी बीमारियां घेर रही हैं। पानी में आर्सेनिक भी काफी स्थानों पर पाया जा रहा है। इसे पीने से घातक बीमारियों हो रही हैं। यह चिंता लोहिया संस्थान में बायोकैमेस्ट्री विभाग के डॉ. मनीष राज कुलश्रेष्ठ ने जाहिर की है।
लोहिया संस्थान (Lohia Institute) में बुधवार से एसोसिएशन फॉर मेडिकल अपडेट (एएमयूकॉन 2025) की शुरुआत हुई। कान्फ्रेंस के आयोजक सचिव डॉ. मनीष राज कुलश्रेष्ठ ने कहा कि फसल में अंधाधुंध कैमिकल युक्त खाद का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है। जिस पानी से फसल की सिंचाई की जा रही है। उसमें हानिकारक आर्सेनिक पाया जा रहा है। ऐसे में शरीर में हैवी मेटल की मात्रा बढ़ गई है। जिससे डायबिटीज, न्यूरो, किडनी, दिल, पेट संबंधी दूसरी गंभीर बीमारियां हो रही हैं।
डॉ. मनीष ने कहा कि बायोकैमेस्ट्री विभाग में मरीजों की खून की जांच हो रही है। इसमें बड़े पैमाने पर हैवी मेटल पाया जा रहा है। यह मेटल कहीं न कहीं भोजन व पानी की वजह से शरीर में दाखिल हो रहा है। इंडक्टिवली कपल्ड प्लाज्मा मास स्पेक्ट्रोमीटर (ICPMS) जांच से शरीर में मेटल की जांच की जा सकती है। डॉ. मनीष ने कहा कि साफ आरओ का पानी पिओ। धूम्रपान से तौबा करें। कैमिकल वाली खाद का कम से कम उपयोग करें। आर्गेनिक खेती को बढ़ावा दिया जाए। इन उपाय को अपनाकर काफी हद तक सुरक्षित रहा जा सकता है।
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लेड से हो रही भूलने की बीमारी
डॉ. मनीष ने कहा कि बहुत से लोग पेंट के कारखानों में काम करते हैं। बैटरी का काम करते हैं। असावधानी से काम करने के कारण लैड (सीसा) शरीर में पहुंच रहा है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान दिमाग को हो रहा है। भुलने की समस्या हो रहा है। दिमाग व नसों लैड से होने वाली बीमारी को लेड पॉइजनिंग कहते हैं। जो शरीर के कई अंगों मस्तिष्क, तंत्रिका तंत्र, किडनी, खून को नुकसान पहुंचाती है। बच्चों में सीखने और व्यवहार संबंधी समस्याएं पनपती हैं। पेट दर्द, एनीमिया, उच्च रक्तचाप और वयस्कों में प्रजनन समस्याएं हो सकती हैं। गंभीर मामलों में मरीज कोमा में जा सकता है। जिससे उसकी मृत्यु भी हो सकती है।
डब्लूएचओ (WHO) की मदद से होगी स्क्रीनिंग
लोहिया के निदेशक डॉ. सीएम सिंह ने कहा कि लैड प्वाइजनिंग एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है। औद्योगिक प्रदूषण, अनियमित बैटरी रीसाइक्लिंग, दूषित जल-स्रोत, पारंपरिक पेंट तथा कुछ घरेलू उत्पादों में सीसे की उपस्थिति के कारण यह समस्या गांव, शहरी क्षेत्रों में देखी जा रही है। इसके लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनोस्को के सहयोग से संस्थान में लेड प्वाइजनिंग की पहचान, आकलन और रोकथाम के लिए संस्थागत क्षमता को सुदृढ़ करने का प्रयास कर रहे हैं। इसके अंतर्गत स्क्रीनिंग, प्रयोगशाला-आधारित जांच और बायोकैमिस्ट्री और कम्युनिटी मेडिसिन विभागों के सहयोग से बहुविषयक अनुसंधान को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।



