Health

फाइलेरिया ग्रसित बच्चों की पहचान के लिए ट्रांसमिशन असेसमेंट सर्वे (TAS)

संक्रमित बच्चों को स्वास्थ्य विभाग के निगरानी में 12 दिन तक दी जाएगी दवा

Lucknow: फाइलेरिया ग्रसित बच्चों की पहचान के लिए यूपी में ट्रांसमिशन असेसमेंट सर्वे (TAS) शुरू किया गया है। यह सर्वे पहली बार देश में विकसित Q-FAT किट के माध्यम से किया जा रहा है। 6 से 7 वर्ष के बच्चों में संचालित इस सर्वे के माध्यम से यदि कोई बच्चा पाज़िटिव पाया जाता है, तो उसे नियमानुसार 12 दिन तक दवा दी जाएगी, जिसकी निगरानी आशा कार्यकर्ता करेंगी।
राज्य फाइलेरिया अधिकारी डॉ. ए.के. चौधरी ने सर्वे से जुड़े सभी स्वास्थ्य कर्मियों को निर्देश दिए हैं कि वे निर्धारित प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन करें और इस अभियान को गंभीरता से लें। साथ ही उन्होंने अभिभावकों से अपील की है कि वह अपने बच्चों की जांच अवश्य कराएं। यह सर्वे 30 मई को समाप्त होगा और अगला मौका दो वर्ष बाद ही आएगा।
यह सर्वे प्रदेश के 13 जिलों अंबेडकरनगर, अयोध्या, शाहजहांपुर, पीलीभीत, जौनपुर, मऊ, सोनभद्र, भदोही, बलिया, चित्रकूट, हमीरपुर, जालौन, महोबा के 118 विकास खंडों में किया जा रहा है। सर्वे के लिए इन्हें 118  ब्लॉक को 72 ईयू ( इंप्लीमेंटेशन यूनिट ) में बांटा गया है। प्रत्येक ईयू में 30 गांव या 30 स्कूलों के 6 से 7 वर्ष या कक्षा 1 या 2 में पढऩे वाले बच्चों की जांच की जाएगी। साथ  पाज़िटिव पाए गए बच्चों का 6 माह बाद पुन: परीक्षण किया जायेगा। डॉ. का कहना है कि हर बच्चे की जांच व्यक्तिगत रूप से की जाए और उन्हें अनुकूल वातावरण मिले। यदि कोई बच्चा पाजिटिव मिलता है, तो उसे नियमानुसार दवा दी जाए।
उन्होंने बताया कि टास सर्वे नियमानुसार तीन चरणों में किया जाता है पहले चरण में पास होने पर MDA (मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) बंद कर दिया जाता है दो साल बाद फिर दूसरा चरण होता है अगर उसमें भी पास होता है तो अगले दो साल बाद फिर तीसरा चरना होता है जब कोई जिला टास सर्वे तीन बार पास कर लेता है तो जनपद को पूरी तरह फाइलेरिया मुक्त माना जाता है।

कैसे होती है फाइलेरिया बीमारी

फाइलेरिया एक गंभीर बीमारी है। यह जान तो नहीं लेती है, लेकिन जिंदा आदमी को मृत के समान बना देती है। इस बीमारी को हाथीपांव के नाम से भी जाना जाता है। यह बीमारी यूलैक्स फैंटीगंस मादा मच्छर के जरिए फैलती है। जब यह मच्छर किसी फाइलेरिया से ग्रस्त व्यक्ति को काटता है तो वह संक्रमित हो जाता है। फिर जब यह मच्छर किसी स्वस्थ्य व्यक्ति को काटता है तो फाइलेरिया के विषाणु रक्त के जरिए उसके शरीर में प्रवेश कर उसे भी फाइलेरिया से ग्रसित कर देते हैं। ज्यादातर मामलों में संक्रमित होने के कई सालों बाद बीमारी का पता चलता है। इस रोग का कारगर इलाज नहीं है। रोकथाम ही इसका समाधान है।

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