मोदी-ट्रंप रिश्तों में दरार: पाकिस्तानी जनरल के डिनर निमंत्रण से शुरू हुई कड़वाहट

प्रसिद्ध मीडिया समूह ब्लूमबर्ग ने दावा किया है कि उसने इस बात का पता लगा लिया है कि आख़िर नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और डोनाल्ड ट्रम्प (Donald Trump) के व्यक्तिगत संबंधों में दरार क्यो आई? ब्लूमबर्ग के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) जब G-7 की बैठक के दौरान कनाडा थे तब उन्हें राष्ट्रपति ट्रम्प से मिलना था लेकिन अचानक ट्रम्प बैठक के पहले ही दिन कनाडा से वापस लौट गए।
वापस लौटने के बाद खबर आई कि पाकिस्तानी जनरल असीम मुनीर के लिए डोनाल्ड ट्रम्प ने वाइट हाउस (White House) में एक शानदार भोज का आयोजन किया है। डोनाल्ड ट्रम्प ने अगले दिन प्रधानमंत्री मोदी को भी उस भोज में शामिल होने के लिए फ़ोन किया। यह पूरी बातचीत कुल 35 मिनट के लिए रही लेकिन इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रम्प में जो बातें हुई उससे दोनों के व्यक्तिगत संबंध इस स्थिति में पहुँच गए कि उसके बाद से संवादहीनता की स्थिति बनी हुई है।
चैनल के अनुसार इस बातचीत में प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि भारत कभी भी न तो इस पर सहमत था और न होगा कि पाकिस्तान और भारत के बीच चल रहे तनाव पर अमेरिका ने मध्यस्थता की है। मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि पाकिस्तान को हमने रात्रि में सैन्य कार्रवाई करके घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था जिसके बाद उसने फ़ोन करके इस कार्रवाई को रोकने के लिए निवेदन किया। इस बातचीत से ट्रम्प असहज हो गए लेकिन उन्होंने इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी को वाइट हाउस में पाकिस्तानी जनरल असीम मुनीर के साथ सामूहिक भोज का निमंत्रण दिया।
लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात से नाराज़गी जताई कि अमेरिका आख़िर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को मिलने के लिए क्यों नहीं बुलाया? यदि असीम मुनीर को बुलाकर अमेरिका में डिनर कराया जाएगा और वहाँ के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को नहीं पूछा जाएगा तो यह स्पष्ट तौर पर पाकिस्तान में मिलिटरी शासन को मान्यता देना है। प्रधानमंत्री ने कहा कि ये वहीं लोग हैं जो भारत में आतंकी हमले के पीछे असल में जिम्मेदार हैं, अतः इन्हें इस तरह से सम्मान देना न पाकिस्तान के लिए ठीक है और न ही भारत के लिए।
इस बातचीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका के आमंत्रण को ठुकरा दिया और कहा कि उनका कार्यक्रम पहले से ही क्रोएशिया में लगा हुआ है।
उसके बाद फिर से दोबारा दोनों नेताओं में कोई बातचीत नहीं हुई। ब्लूमबर्ग के सूत्रों की माने तो अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे डी वांस के दौरे के बाद दोनों देश तेज़ी से आगे बढ़ रहे थे और दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल को भरोसा था कि उनके बीच जिस तरह के संबंध हैं उससे वह कोई न कोई एक कॉमन ग्राउंड खोज लेंगे। लेकिन भारत ने अमेरिका के भीतर के फार्मा लॉबी ओर डेरी लॉबी के दबाव को कम करके आंका।
यह लगा कि अमेरिकी प्रतिनिधि उनके दबाव में नहीं आयेंगे लेकिन ऐसा लगता है कि उस लॉबी ने वहाँ के नेताओं पर दबाव स्थापित कर दिया और फिर चीजें ख़राब होती चली गईं। भारत और अमेरिका दोनों के प्रतिनिधियों पर अलग अलग प्रकार के दबाव थे। भारत के प्रतिनिधियो को निर्देश था कि कृषि और डेयरी सेक्टर पर कोई समझौता नहीं होगा और वहीं अमेरिका के प्रतिनिधियों पर दबाव था कि चीन से बातचीत फेल होने के बाद भारत के बाज़ार खुलवाए जाँय।
अंत में स्थिति यहाँ तक पहुँची कि दोनों देश के प्रतिनिधि यह चाहते थे कि उनके राष्ट्राध्यक्ष दूसरे को फ़ोन करें और वार्ता करके बीच का रास्ता निकालें लेकिन न प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रम्प को काल किया और न ट्रंप ने मोदी जी को। उल्टा भारत पर दबाव बनाने के लिए एक के बाद एक रेड लाइन को डोनाल्ड ट्रंप ने क्रॉस किया जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप के किसी भी बात पर कोई भी जवाब देना अथवा ट्रंप की चर्चा करना भी बंद कर दिया। सब तरह के दबाव के बाद भी जब भारत नहीं झुका तो अंत में झुंझलाकर राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत के इकॉनमी को डेड इकॉनमी की संज्ञा दी और उसके बाद तारीफ़ लगाने की घोषणा की।