यूपी में फिर से मिलने लगे डिप्थीरिया, पर्टुसिस और टायफॉइड के मरीज
रोगों की पहचान के लिए लैब टेक्नीशियन का प्रशिक्षण जरूरी: डॉ. शीतल

Lucknow: डिप्थीरिया (Diphtheria), पर्टुसिस (Pertussis) और टायफॉइड (Typhoid) के मरीज फिर मिलने लगे हैं। टीके से रोकी जाने वाली इन बीमारियों की पहचान और रोकथाम में माइक्रोबायोलॉजिस्ट की मुख्य भूमिका हो सकती है। लैब टेक्नीशियन और माइक्रोबायोलॉजिस्ट (Microbiologist) को प्रशिक्षित किया जाए तो इन रोगों की समय से पहचान कर इलाज शुरू किया जा सकता है। यह कहना है कि डॉ. शीतल वर्मा का।
KGMU के माइक्रोबायोलॉजी और डब्लूएचओ के सहयोग से तीन दिवसीय राष्ट्रीय हैंड्स-ऑन कार्यशाला (National Hands-on Workshop) का आयोजन किया गया। कार्यशाला में डिप्थीरिया, पर्टुसिस (काली खांसी) और टायफॉइड जैसी टीके से रोकी जा सकने वाली बीमारियों के प्रयोगशाला निदान पर चर्चा की गई। कार्यशाला का उद्घाटन विभागाध्यक्ष प्रो. विमला वेंकटेश ने किया। डॉ. शीतल ने बताया कि प्रशिक्षण का उद्देश्य देशभर के माइक्रोबायोलॉजिस्ट और लैब टेक्नीशियनों को बीमारियों के सटीक और समयबद्ध निदान के लिए प्रशिक्षित करना था। उन्होंने बताया कि बीते कुछ समय में डिप्थीरिया के रोगियों के मिलने से चिंता बढ़ गई।
यह रोग दोबारा से उभर रहा है जिसके लिए जरूरी है कि सतर्क रहा है। रोग की पहचान के लिए कल्चर (Culture) और टॉक्सीजेनेसिटी टेस्टिंग (Toxigenicity Testing) जरूरी है। इस तहर से पर्टुसिस जिसे आम भाषा में काली खांसी कहा जाता है। इसके लक्षण किशोरों और वयस्कों में कई बार स्पष्टï नहीं हो पाते जिस कारण इलाज मुश्किल होता है। रोगों की पहचान करने से इलाज हो सकता है। इसके अलावा टायफॉइड जिसे मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंट सैल्मोनेला टायफी कहा जाता है उसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इनकी रोकथाम एक चुनौती हो गई है। लक्षण के आधार पर अगर लैब में जांच की और बीमारी की पहचान हो तो इलाज आसान हो जाएगा।
इस अवसर पर WHO India की नेशनल प्रोफेशनल ऑफिसर डॉ. दीपा शर्मा ने कहा कि भारत में प्रयोगशाला क्षमताओं को और मजबूत किए जाने की जरूरत है। उनका एक नेटवर्क बनाना होगा ताकि जांच के नतीजों को आपस में साझा किया जा सके। इससे बीमारियों के इलाज में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि प्रयोगशालाओं से मिलने वाला डेटा किसी भी महामारी की प्रतिक्रिया, टीकाकरण नीतियों और एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस नियंत्रण के लिए अनिवार्य होता है। कार्यशाला में प्रो. विमला वेंकटेश ने कहा कि केजीएमयू का माइक्रोबायोलॉजी विभाग डब्लूएचओ के सहयोग से राष्ट्रीय स्तर पर प्रयोगशाला क्षमता निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। इस तरह की कार्यशालाएँ न केवल चिकित्सकीय कौशल को निखारती हैं बल्कि देश को महामारी रणनीति तैयार करने में मदद करती हैं।