कम उम्र में ही बिगड़ रहा स्वास्थ्य, 89 फीसदी किशोरियों में खून की कमी

Lucknow: किशोरियों (Teenagers) में खून की कमी (Anemia) की समस्या अब सिर्फ ग्रामीण या गरीब तबकों तक सीमित नहीं रही। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) के एक हालिया सर्वे से सामने आया है कि शहरी, पढ़ी-लिखी और आर्थिक रूप से सक्षम परिवारों की लड़कियां भी एनीमिया से जूझ रही हैं। 12 से 18 वर्ष की 150 किशोरियों पर किए गए इस अध्ययन में 89 प्रतिशत किशोरियां एनीमिक पाई गईं।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह समस्या सिर्फ स्वास्थ्य नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता और पोषण संबंधी आदतों से भी जुड़ी हुई है। जंक फूड की बढ़ती लत, हरी सब्जियों और आयरन-फोलिक एसिड का कम सेवन इस खतरनाक स्थिति की प्रमुख वजह है। डॉ. सुजाता देव के नेतृत्व में चिकित्सकों ने सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर एडोल्सेंट हेल्थ एंड डेवलपमेंट के सहयोग से किशोरियों में एनीमिया और पोषण संबंधी चुनौतियां विषय पर शोध शुरू किया। अध्ययन में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों 12 से 18 वर्ष की 150 किशोरियों को शामिल किया गया।
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अध्ययन में स्कूली किशोरियों का ब्लड टेस्ट करने के साथ कई सवाल भी पूछे गए। केवल 11 फीसद किशोरियों में खून व हीमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य से अधिक थी। चिकित्सकों ने बताया कि खून की कमी महिलाओं के लिए बहुत ही घातक है। सामान्य रूप से इसका पता नहीं चलता मगर गर्भधारण के समय यदि महिला एनीमिक हो तो गर्भवती व गर्भ में पल रहे शिशु के लिए जानलेवा हो सकता है।
डॉ. सुजाता ने बताया कि किशोरावस्था में हीमोग्लोबिन की जांच समय समय पर कराते रहना चाहिए ताकि खून की कमी का पता चल सके। अगर ऐसा है तो हरी सब्जियों और विटामिन सी का कम सेवन, आयरन-फोलिक एसिड का सेवन करें।
शोध के निष्कर्ष
– 89′ किशोरियां एनीमिया से प्रभावित (हल्का – 26.6′, मध्यम – 42.6′, गंभीर – 19.3′)
– केवल 26′ किशोरियां ही रोज हरी सब्जियां खाती हैं, – मात्र 16.6′ ही विटामिन सी का सेवन करती हैं
– 25′ किशोरियां प्रतिदिन जंक फूड खाती हैं, जबकि 71′ ने स्वीकार किया कि वे कभी-कभी नियमित भोजन की जगह जंक फूड लेती हैं
– 52.6′ ने आईएफए और 43.3′ ने अल्बेंडाजोल का सेवन किया
– 74′ किशोरियां एनीमिया के बारे में जागरूक थीं, फिर भी प्रभावित हो गईं
पोषण की कमी से समस्याएं
डॉ. सुजाता देव के अनुसार किशोरावस्था जीवन का सबसे महत्वपूर्ण चरण है। इस दौरान पोषण की कमी से लंबाई, वजन और मानसिक एकाग्रता प्रभावित होने के साथ-साथ भविष्य की शिक्षा, कार्यक्षमता और मातृत्व स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। बाहर के खाद्य पदार्थ जैसे पिज्जा, बर्गर और चिप्स न सिर्फ पोषणहीन हैं बल्कि थकान, संक्रमण और हार्मोनल असंतुलन का कारण भी बनते हैं।
विशेषज्ञों के सुझाव
– स्कूलों और समुदाय स्तर पर पोषण शिक्षा व हेल्थ काउंसलिंग अनिवार्य की जाए
– किशोरियों को नियमित रूप से आयरन-फोलिक एसिड और अल्बेंडाजोल उपलब्ध कराया जाए
– परिवारों को संतुलित आहार और जंक फूड से बचाव के महत्व के बारे में जागरूक किया जाए
हीमोग्लोबिन का मानक
सामान्य : >12 ग्राम/डेसीलीटर
हल्का एनीमिया : 11-11.9 ग्राम/डेसीलीटर
मध्यम एनीमिया : 8-10.9 ग्राम/डेसीलीटर
गंभीर एनीमिया : <8 ग्राम/डेसीलीटर