Thalassemia Day 2025: “थैलेसीमिया की राजधानी” कहे जाने वाले भारत में चेतावनी की घंटी

New Delhi: हर वर्ष 8 मई को मनाया जाने वाला विश्व थैलेसीमिया दिवस (World Thalassemia Day 2025) इस बार भारत के लिए एक गहरी चिंता और आत्ममंथन का अवसर लेकर आया है। इस वर्ष की थीम भारत की भयावह स्थिति को रेखांकित करती है — भारत दुनिया में थैलेसीमिया रोगियों की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, और इस कारण इसे दुर्भाग्यवश “थैलेसीमिया की राजधानी” कहा जा रहा है।
भारत में थैलेसीमिया: आंकड़े डरावने हैं
मेरठ के डॉ. अनिल नौसरान ने बताया कि थैलेसीमिया एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें शरीर पर्याप्त मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं बना पाता। नतीजतन, रोगी को जीवनभर खून चढ़वाने की आवश्यकता होती है। भारत में 1 लाख से अधिक थैलेसीमिया मेजर रोगी हैं और हर साल लगभग 10,000 बच्चे इस बीमारी के साथ जन्म लेते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि देश में लगभग 4 करोड़ लोग थैलेसीमिया के वाहक हैं, जिनमें से अधिकांश को इसका पता ही नहीं होता।
“मेडिकल कुंडली”: रोकथाम की दिशा में आशा की किरण
डॉ. नौसरान का मानना है कि थैलेसीमिया की रोकथाम का सबसे प्रभावी तरीका है विवाह पूर्व रक्त जांच, जिसे अब “मेडिकल कुंडली” कहा जा रहा है। जैसे परंपरागत वैवाहिक कुंडली मिलाई जाती है, वैसे ही यह मेडिकल कुंडली यह सुनिश्चित कर सकती है कि विवाह करने वाले दोनों व्यक्ति थैलेसीमिया वाहक तो नहीं। यदि दोनों वाहक हैं, तो हर गर्भधारण में 25% संभावना होती है कि बच्चा थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित होगा।
बचाव के लिए जरूरी है कि मेडिकल कुंडली को विवाह पूर्व अनिवार्य किया जाए, ताकि थैलेसीमिया को पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ने से रोका जा सके।
एक बीमारी, जो पूरे परिवार को तोड़ देती है
थैलेसीमिया सिर्फ रोगी की चुनौती नहीं है, यह पूरा परिवार झेलता है। हर महीने रक्त चढ़वाना, दवाइयों और अस्पताल के खर्च, और भविष्य को लेकर अनिश्चितता — ये सब मिलकर एक भावनात्मक, मानसिक और आर्थिक संकट बन जाते हैं। मध्यम और निम्न आय वर्ग के परिवारों के लिए यह रोग वित्तीय आपदा का रूप ले सकता है।
अब नहीं तो कब?
अब समय है कार्रवाई का
जागरूकता, समय पर जांच और सहयोगी नीतियों से भारत इस संकट को पलट सकता है। विश्व थैलेसीमिया दिवस 2025 एक आह्वान है कि सरकार, स्वास्थ्यकर्मी, शिक्षक और आम नागरिक मिलकर इस बीमारी के खिलाफ लड़ें। मेडिकल कुंडली को विवाह से पहले की अनिवार्य प्रक्रिया बनाना थैलेसीमिया उन्मूलन की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं और समाज के हर वर्ग को एकजुट होकर यह संकल्प लेना होगा कि जागरूकता, समय पर जांच और नीतिगत बदलाव के ज़रिए हम थैलेसीमिया के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ें।
संदेश स्पष्ट है
“रोकथाम संभव है। ज़िम्मेदारी साझा है। और एक थैलेसीमिया-मुक्त भारत हमारा लक्ष्य है।”