केजीएमयू: आठ साल बाद दोबारा करना पड़ा ऑपरेशन
नेफ्रोयूरेटरेक्टॉमी करके दूर की मूत्र टपकने की समस्या

LUCKNOW: नौ वर्षीय अंशिका का मल द्वार न होने की वजह से उसका मल गर्भाशय (Uterus) के रास्ते से निकल रहा था। इस समस्या के लिए बच्ची का साल 2017 में डॉ. जेडी रावत द्वारा ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन के बाद बच्ची को मूत्र टपकने की शिकायत शुरू हो गई। डॉक्टर ने दूरबीन विधि (Laparoscopic) से नेफ्रोयूरेटरेक्टॉमी (Nephrureterectomy) करके समस्या का समाधान किया।
KGMU के पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. जेडी रावत का कहना है कि बाराबंकी वेजापुर निवासी प्रेम सिंह अपनी बेटी को लेकर विभाग में आए। उन्होंने बताया कि इतनी कम उम्र में बेटी को ब्लड प्रेशर की समस्या बनी हुई है। दवा लेने के बाद भी बीमारी ठीक नहीं हो रही है। बेटी को मूत्र टपकने की भी परेशानी है। अंशिका को विभाग में भर्ती करके डॉ. रावत ने उसकी जांच की।
अल्ट्रासाउंड और न्यूक्लियर स्कैन करने पर देखा कि बाईं ओर की किडनी का आकार न के बराबर है। किडनी इतनी छोटी थी कि वह काम ही नहीं कर सकती थी। यूरेटर भी नहीं दिख रहा था। इस उन्होंने दूरबीन विधि से बाईं ओर की नेफ्रयूरेटरेक्टॉमी (गुर्दा व मूत्रनली को हटाने की शल्यक्रिया) करने का फैसला लिया। उनकी टीम ने इस सर्जरी को सफल तरीके से अंजाम दिया जिसके बाद अंशिका की तबियत में सुधार होने लगा।
डॉ. रावत ने बताया कि ऑपरेशन के दौरान देखा गया कि बायां गुर्दा काफी छोटा है और मूत्रनली फूली हुई (डायलेटेड) थी। मूत्रनली का अंतिम छोर असामान्य रूप से योनि में खुल रहा था। इसी कारण मूत्र टपकने की समस्या हो रही थी। समस्या को दूर करने के लिए ही लैप्रोस्कोपिक नेफ्रयूरेटरेक्टॉमी करना ही सबसे बेहतर विकल्प था।
ऑपरेशन करने वाली टीम
डॉ. जेडी रावत ने बताया कि बच्ची का ऑपरेशन करने वाली टीम में उनके साथ डॉ. राहुल कुमार राय व डॉ. मनीष राजपूत शामिल थे। एनेस्थीसिया विभाग के डॉ. नील कमल और सिस्टर सुधा ने भी अपना सहयोग दिया।