KGMU में उत्तर भारत के पेरियार ललई सिंह यादव की जयंती मनाई गई
शिक्षा ही मुक्ति का रास्ता है और जातिगत भेदभाव के खिलाफ संघर्ष ही समाज को बराबरी की ओर ले जा सकता है

LUCKNOW: किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में शिक्षकों व कर्मचारियों ने सोमवार को उत्तर भारत के पेरियार कहे जाने वाले ललई सिंह यादव जी की जयंती मनाई। इस मौके पर नव नियुक्त अधिष्ठाता दंत संकाय डॉ. जीके सिंह (Dr GK Singh) को भी सम्मानित किया गाय।
इस मौके पर सामाजिक न्याय और समानता के प्रखर योद्धा ललई सिंह यादव की को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर ललई सिंह यादव के संघर्ष और योगदान को याद करते हुए उनके विचारों को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया गया।
इस मौके पर डॉ. हरीराम ने कहा कि ललई सिंह यादव जी जीवन पर्यन्त अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ लड़ते रहे। उन्होंने पेरियार ईवी रामासामी की किताब ‘द रामायना: ए ट्रू रीडिंग’ को पहली बार हिंदी में अनुवाद कर सच्ची रामायण लिखी। सच्ची रामायण के प्रकाशन के साथ उत्तर भारत में तूफान उठ खड़ा हुआ था। सच्ची रामायण ने वह धूम मचाई कि धर्म के तथाकथित रक्षक उसके विरोध में सड़कों पर उतर आए।
तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने दबाव में आकर 8 दिसम्बर 1969 को धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोप में किताब को जब्त कर लिया। जिसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट तक लड़े और जीते। उनका पूरा जीवन बहुजनों वंचितों के लिए समर्पित रहा। जीवन भर वह पाखंड के खिलाफ लड़ते और लोगों को जागरूक करते रहे।
इस मौके प डॉ. संतोष कुमार ने कहा कि अन्य बहुजन नायकों की तरह उनका जीवन भी संघर्षों से भरा हुआ है। वह 1933 में ग्वालियर की सशस्त्र पुलिस बल में बतौर सिपाही भर्ती हुए थे, पर कांग्रेस के स्वराज का समर्थन करने के कारण, जो ब्रिटिश हुकूमत में जुर्म था, वह दो साल बाद बर्खास्त कर दिए गए। उन्होंने पुलिस में और बाद में जेल में भी हड़ताल करा दी थी।
1950 में सरकारी सेवा से मुक्त होने के बाद उन्होंने अपने को पूरी तरह बहुजन समाज की मुक्ति के लिए समर्पित कर दिया। इस मौके पर डॉ. यूएस पाल, डॉ. विजय कुमार, डॉ. सुरेश बाबू, सहित अन्य वक्ताओं ने भी विचार व्यक्त किए।
शिक्षा ही बराबरी का माध्यम
जयंती पर आयोजित कार्यक्रमों में वक्ताओं ने कहा कि ललई सिंह यादव ने डॉ. भीमराव आंबेडकर, जोतिबा फुले और पेरियार रामासामी के विचारों को उत्तर भारत के गाँव-गाँव तक पहुँचाया। उनका मानना था कि शिक्षा ही मुक्ति का रास्ता है और जातिगत भेदभाव के खिलाफ संघर्ष ही समाज को बराबरी की ओर ले जा सकता है।
ललई सिंह यादव ने अपने लेखन और अनुवादों से शोषित वर्ग की आवाज़ बुलंद की। उन्होंने डॉ. आंबेडकर की प्रसिद्ध पुस्तक “जाति का विनाश” का हिंदी अनुवाद कर इसे उत्तर भारत में लोकप्रिय बनाया। उनकी रचनाएँ आज भी सामाजिक आंदोलनों के लिए मार्गदर्शक मानी जाती हैं।
वक्ताओं ने कहा कि ललई सिंह यादव को उत्तर भारत का पेरियार इसलिए कहा गया क्योंकि उन्होंने जाति-व्यवस्था के खिलाफ डटकर आवाज उठाई। वे जीवनभर दलित-पिछड़े और वंचित समाज को शिक्षा, संगठन और संघर्ष के मार्ग पर आगे बढ़ाते रहे।
इस मौके पर डाॅॅ. सुरेश बाबू, डॉ. हरि राम, डॉ. यूएस पाल, डॉ. संतोष कुमार, डॉ. शैलेंद्र यादव, विजय कुमार, डॉ. अवधेश यादव, डीन GK सिंह, डॉ. जितेंद्र राव, लक्ष्य यादव, डॉ. रामशंकर, डॉ. नंद लाल डॉ. मयंक यादव, डॉ. गीता सिंह, डॉ. अलका सिंह डॉ. शालिनी कौशल, डॉ. पूनम बाला, डॉ. अंबरीश कुमार डॉ. सर्वेश कुमार, डॉ. जितेंद्र सिंह, डॉ. सत्येंद्र सोनकर डॉ. अजय चौधरी, डॉ. रवि कुमार सिंह, डॉ. अनिल सिंह सहित बड़ी संख्या में नर्सिंग स्टाफ और कर्मचारियों ने कार्यक्रम में भाग लिया।