LUCKNOW: उत्तर प्रदेश में लखनऊ, कानपुर, गाजियाबाद, नाेयडा सहित सभी शहरों में आवारा और आज़ाद घूमने वाले कुत्तों (Stray Dogs) की संख्या लगातार बढ़ रही है। इन कुत्तों के कारण लोगों में डर और असुरक्षा का माहौल बना रहता है। आए दिन होने वाले डॉग अटैक (Dog Attack) और रेबीज (Rabies) के खतरे को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। अब प्रदेश के सभी जिलों के आवारा कुत्तों को माइक्रोचिप (Microchip) लगाई जाएगी।
इस तकनीक के ज़रिए न सिर्फ कुत्तों की पहचान आसान होगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जा सकेगा कि उन्हें समय पर एंटी रेबीज का टीका लगा है या नहीं। इसके अलावा, किसी कुत्ते द्वारा हमला करने की स्थिति में तुरंत उसकी पूरी जानकारी निगम के रिकॉर्ड से मिल सकेगी। इसके जरिए नगर निगम के पास कुत्तों का एक डाटा बैंक (Data Bank) बनेगा। किसी कुत्ते के दोबारा काटने पर उसे आजीवन एनिमल बर्थ कंट्रोल सेंटर (Animal Birth control centre) में रखा जाएगा।
नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव अमृत अभिजात की ओर से सभी नगर निगम और नगर पालिकाओं को आदेश जारी किए गए हैं। यह चिप एक डिवाइस से कनेक्ट होगी। किसी भी कुत्ते को स्कैन करने पर उसके बारे में पूरी जानकारी मिल जाएगी—उसका बधियाकरण हुआ है या नहीं, उसने किसी को काटा है या नहीं, और उसे वैक्सीन कब लगी थी।
क्यों ज़रूरी है माइक्रोचिप
नगर निगम अधिकारियों का कहना है कि अभी तक आवारा कुत्तों की सही संख्या और उनके टीकाकरण का कोई ठोस डाटा उपलब्ध नहीं है। कई बार शिकायत आने के बाद भी यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि संबंधित कुत्ते को पहले से एंटी रेबीज वैक्सीन लगी है या नहीं।
माइक्रोचिप लगने के बाद हर कुत्ते का एक यूनिक आईडी (Unique ID) होगा। इससे पता चल सकेगा—
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उसकी नसबंदी हुई है या नहीं।
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उसे कब और कितनी बार टीका लगाया गया है।
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वह किस नस्ल का है।
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उसने पहले किसी पर हमला किया है या नहीं।
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उसका स्वास्थ्य रिकॉर्ड कैसा है।
यह जानकारी सीधे एमपीएम वर्ल्ड कंट्रोल सेंटर में अपलोड होगी और नगर निगम के पास हर समय उपलब्ध रहेगी।
जिम्मेदारी तय
शासन ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी आवारा कुत्ते या पालतू श्वान में माइक्रोचिप नहीं पाई जाती, तो उसे तुरंत लगाया जाएगा। यहां तक कि पालतू कुत्तों के मालिकों को भी अपने पालतू जानवरों का नाम, नस्ल और टीकाकरण संबंधी विवरण निगम को उपलब्ध कराना अनिवार्य होगा।
यदि कोई पालतू मालिक आदेशों का पालन नहीं करता, तो उस पर कार्रवाई की जाएगी। इसी तरह, यदि कोई आवारा कुत्ता बार-बार काटने की घटना में शामिल पाया जाता है, तो उसकी रिपोर्ट स्थायी समिति तक भेजी जाएगी और कार्रवाई की जाएगी।
समिति करेगी जांच
किसी भी आवारा या पालतू कुत्ते को छोड़ने से पूर्व माइक्रोचिप लगाना अनिवार्य होगा। कुत्ते के काटने की घटना का पूरा विवरण सेंटर के अभिलेख में दर्ज किया जाएगा। यदि वही कुत्ता दूसरी बार किसी को काटता है, तो एक तीन सदस्यीय समिति यह जांच करेगी कि घटना अप्रेरित थी या नहीं। दोषी पाए जाने पर कुत्ते को एनिमल बर्थ कंट्रोल सेंटर में रखा जाएगा।
गोद लेने वालों के लिए नियम
यदि कोई व्यक्ति ऐसे कुत्ते को गोद लेना चाहता है, तो उसका नाम, पता और पहचान विवरण माइक्रोचिप अभिलेख में दर्ज किया जाएगा। गोद लेने वाले से यह लिखित शपथ-पत्र लिया जाएगा कि वह कुत्ते को दोबारा सड़कों पर नहीं छोड़ेगा। आदेश का उल्लंघन करने पर उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
तकनीक कैसे काम करेगी
यह चिप एक स्कैनिंग डिवाइस से जुड़ी होगी। स्कैन करने पर कुत्ते की पूरी जानकारी सामने आ जाएगी—उसकी नसबंदी हुई है या नहीं और उसे कब वैक्सीन लगी थी।
2030 तक रेबीज मुक्त भारत का लक्ष्य
भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक कुत्तों के काटने से होने वाली रेबीज जनित मौतों को शून्य करने का लक्ष्य रखा है। माइक्रोचिप तकनीक इस मिशन को गति देगी, क्योंकि इससे हर कुत्ते का टीकाकरण रिकॉर्ड सुरक्षित रहेगा।
डॉग अटैक पर लगेगी रोक
लखनऊ में पिछले कुछ वर्षों से कुत्तों के हमले बड़ी समस्या बन चुके हैं। अस्पतालों में रोजाना सैकड़ों लोग कुत्तों के काटने के मामले लेकर पहुंचते हैं। शासन का मानना है कि माइक्रोचिपिंग से इन घटनाओं में काफी कमी आएगी।
माइक्रोचिप से यह भी पता चलेगा कि जिस कुत्ते ने हमला किया है, वह पहले से टीकाकृत है या नहीं। इससे रेबीज संक्रमण के खतरे को समय रहते नियंत्रित किया जा सकेगा और पीड़ित को तुरंत सही इलाज व एंटी रेबीज इंजेक्शन मिल सकेगा।