UP

15 को आगरा व 17 को नोएडा में नये खुलासे का एलान

दोनों जिलों में नियामक आयोग करेगा टैरिफ पर जनसुनवाई

Lucknow: राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने 15 को आगरा और 17 जुलाई को ग्रेटर नोएडा में होने वाली बिजली दरों (Tariff) पर सुनवाई (Hearing) में निजीकरण का सच उजागर करने का ऐलान किया है। परिषद का आरोप है कि आगरा की बिजली कम्पनी टोरेंट पावर (Torrent Power) और नोएडा में कार्यरत नोएडा पावर कंपनी लिमिटेड (NPCL) प्रदेश की जनता को अपेक्षित लाभ नहीं दे पा रही हैं। केवल अपनी मुनाफाखोरी में जुटी हैं।

परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने कहा कि टोरेंट पावर और एनपीसीएल ने जितना लाभ कमाया है, उसका 5 प्रतिशत भी उपभोक्ताओं को बिजली दरों में राहत के रूप में नहीं दिया गया। यह दर्शाता है कि निजीकरण (Privatization) का उद्देश्य जनता नहीं, बल्कि निजी घरानों को लाभ पहुंचाना रहा है। वर्मा ने मांग की कि ऊर्जा मंत्री स्वयं इन दोनों सुनवाइयों में उपस्थित हों और जनता की राय को सीधे सुनें। उन्होंने आरोप लगाया कि विधानसभा में इन कंपनियों की सराहना करने वाले ऊर्जा मंत्री को जमीनी सच्चाई भी देखनी चाहिए।

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2200 करोड़ का है टोरेंट घोटाला

उपभोक्ता परिषद ने आरोप लगाया कि टोरेंट पावर ने पावर कॉरपोरेशन (UPPCL) का लगभग 2200 करोड़ रुपये का बकाया जो समझौते के तहत वापस करना था। वह वसूल तो किया मगर कारपोरेशन को नहीं दिया। ग्रेटर नोएडा में कार्यरत एनपीसीएल पर ट्रांसफार्मर और उपभोक्ता सामग्री की खरीद में भारी गड़बडिय़ों के आरोप लगे हैं। परिषद का आरोप है कि एनपीसीएल कंपनी का प्रबंधन ठेकेदारों से मिलीभगत कर मुनाफा कमा रहा है।

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जांच रिपोर्ट दबाई गई, कोई समीक्षा नहीं

परिषद अध्यक्ष ने यह भी बताया कि पूर्व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने टोरेंट पावर और एनपीसीएल की कार्यप्रणाली की समीक्षा के लिए जांच समिति (Committee) गठित की थी। लेकिन, जांच रिपोर्ट आने के बाद उसे दबा दिया गया और अब तक उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। वर्मा ने आरोप लगाया कि शासन स्तर पर जानबूझकर इन रिपोर्टों को नजरअंदाज किया जा रहा है।

जनता खुद देखे हकीकत: उपभोक्ता परिषद

वर्मा ने आम जनता से अपील की कि लोग विद्युत नियामक आयोग की होने वाले सार्वजनिक सुनवाइयों में शामिल होकर खुद देखें कि निजीकरण के दावों में कितनी सच्चाई है। परिषद का कहना है कि इन दोनों बिजली वितरण कंपनियों के कामकाज की अब तक कोई स्वतंत्र समीक्षा नहीं की गई है, जिससे यह साबित होता है कि सरकार और निजी कंपनियों के बीच ‘साठगांठ’ चल रही है और नुकसान केवल उपभोक्ता उठा रहा है।

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