हर छह में से एक दंपति नि:संतान, आधे मामलों में पुरुष जिम्मेदार
बदलती जीवनशैली से खराब हो रही शुक्राणु गुणवत्ता, जांच कराने में हिचकते हैं पुरुष

Lucknow: हर छह में से एक दंपति नि:संतानता (Infertility) से जूझ रहा है और लगभग आधे मामलों में पुरुष कारक जिम्मेदार हैं। बावजूद इसके आज भी हमारे समाज में संतान न होने के ज्यादातर मामलों में महिलाओं को ही जिम्मेदार माना जाता है। इसी कारण बच्चा न होने पर तमाम इलाज उन्हीं का कराया जाता है।
यह जानकारी वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ एवं आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. गीता खन्ना (Dr Geeta Khanna) ने बदलता परिदृश्य-बांझपन के उपचार विषय पर आयोजित सीएमई के दौरान दी। उन्होंने कहा कि पुरुष बांझपन विश्व में तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन पुरुष जल्द यह स्वीकारने को तैयार नहीं होते कि उनमें भी दोष हो सकता है। पुरुष जांच कराने से हिचकते हैं, जिससे उपचार में देरी होती है और परिणाम खराब होते हैं।
उनका कहना है कि जिस तरह से लोगों की जीवनशैली बदल रही है। मोटापा, धूम्रपान, शराब, तनाव, देर से विवाह के कारण पुरुषों की शुक्राणु गुणवत्ता खराब हो रही है। सही इलाज कराने की बजाय करीब 78 प्रतिशत दंपति मानसिक तनाव से गुजरते हैं और चौंकाने वाली बात है कि 60 प्रतिशत महिलाएं पहले ओझा, व अन्य तंत्र-मंत्रों का सहारा लेती है। इलाज में देरी से यह दिक्कत हो बढ़ जाती है।
लखनऊ में ही आईवीएफ केंद्रों (IVF Centres) की संख्या 60-65 तक पहुंच जाना बांझपन (Infertility) की बढ़ती महामारी को दर्शाता है, डॉ. खन्ना ने कहा कि कलंक और जागरूकता की कमी के कारण महिलाओं पर अनुचित दोषारोपण होता है। पुरुषों को यह समझना होगा कि बांझपन एक बीमारी है, कलंक नहीं। जब तक पुरुष समय पर जाँच के लिए आगे नहीं आएंगे, तब तक दंपतियों को चुप्पी में पीड़ा झेलनी पड़ेगी।
सीएमई में आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. सोनिया मलिक, डॉ. के.डी. नायर, डॉ. पूनम नायर, डॉ. कुलदीप जैन और डॉ. यूसुफ अल्हाऊ ने भी एआरटी में प्रथम तिमाही रक्तस्राव, आईवीएफ में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रेजिस्टेंट पीसीओएस, मोटापा और प्रजनन क्षमता, पुरुष स्वास्थ्य, परामर्श, प्रिसीजन आईवीएफ प्रोटोकॉल, एम्ब्रायोलॉजी और अल्ट्रासाउंड में नवाचार जैसे विषयों अपने विचार रखे।