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UPPCL: यूपी में स्मार्ट मीटर घोटाला: सीतापुर में एफआईआर, गोंडा में नोटिस

LUCKNOW: उत्तर प्रदेश में स्मार्ट प्रीपेड मीटर (Smart Prepaid meter) लगाने का काम निजी कंपनियों को देने के बाद अनियमितताओं की शिकायतें लगातार आ रही हैं। प्रदेश में करीब 27,342 करोड़ रुपए की लागत से यह प्रोजेक्ट चल रहा है। इसमें से मध्यांचल विद्युत निगम (MVVNL) ने पोलरिस कंपनी को 5,200 करोड़ का टेंडर दिया गया है।

पिछले दिनों सीतापुर (Sitapur) में पोलरिस कंपनी और कंपनी के स्टेट हेड जोनल प्रोजेक्ट मैनेजर व अन्य कार्मिकों के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई है। पीडि़त ने आरोप लगाया है कि कंपनी ने पुराने मीटर उतारने के बाद उनकी रीडिंग को शून्य दिखा दी। इतना ही नहीं जिले में 443 पुराने मीटर कंपने के कर्मियों ने उतार तो लिए मगर विद्युत परीक्षण खंड में जमा नहीं किए। इससे उपभोक्ताओं के बिल जारी नहीं हो पाए और विभाग को करोड़ों का नुकसान हो रहा है। कंपनी और पेटी ठेके पर काम करने वाली फर्म के कर्मचारी विभाग को लगातार राजस्व क्षति पहुंचा रहे हैं।

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गोंडा जिले में बड़ा घोटाला

दूसरा मामला गोंडा (Gonda) में सामने आया है जहां पोलरिस कंपनी ने पुराने मीटर उतार कर सीलिंग सर्टिफिकेट में पुराने मीटर की रीडिंग जीरो भर दी। यानि पुराने मीटर पर रीडिंग मिली ही नहीं। शून्य रीडिंग भरने के कारण लाखों करोड़ों का नुकसान बिजली विभाग का होना तय है। शिकायतें आ रही हैं कि स्मार्ट प्रीपेड मीटर का कोई पुराना लेखा जोख विभाग को कंपनी नहीं दे रही है तो उपभोक्ताओं को बिजली बिल भी नया मीटर लगने के बाद नहीं प्राप्त हो रहे हैं।

गोंडा जनपद में पोलरिस कंपनी ने 2645 नग मीटर वापस नहीं किए। वहीं एक मामले में 1625 नग मीटर वापस न मिलने पर मुख्य अभियंता ने एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं। गोंडा के मुख्य अभियंता के अनुसार बार-बार नोटिस देने के बाद भी कंपनी कोई जवाब नहीं दे रही है। इससे विभाग की छवि धूमिल हो रही है।

उपभोक्ता परिषद ने लगाए गंभीर आरोप

राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि अभी भी लाखों मीटरों की रीडिंग का कोई हिसाब कंपनी नहीं दे रही है। अगर इन्हें शून्य कर दिया गया तो विभाग को करोड़ों का नुकसान होगा। वर्मा ने आरोप लगाया कि उद्योगपतियों ने विभाग के उच्च अधिकारियों को चुप करा दिया है और जल्दबाजी में स्मार्ट मीटर लगाने पर जोर दिया जा रहा है। स्मार्ट प्रीपेड मीटरों का ठेका पहले ही 8,500 करोड़ रुपए अधिक दर पर दिया गया है। पुराने मीटरों का हिसाब गायब होने और रीडिंग शून्य करने से स्पष्टï है कि विभाग को करोड़ों रुपए का चूना लग चुका है।

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