यूपी के स्वास्थ्य विभाग में एक अर्पित सिंह के नाम पर 6 लोग कर रहे नौकरी
उत्तर प्रदेश में शिक्षा विभाग के बाद स्वास्थ्य विभाग में बड़ा फर्जीवाड़ा, 2016 से एक्सरे टेक्नीशियन के पदों पर दिया जा रहा वेतन
LUCKNOW: शिक्षा विभाग के बाद अब उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग की वर्ष 2016 की भर्ती में गड़बड़ी का बड़ा मामला उजागर हुआ है। ‘अर्पित सिंह’ नाम के उम्मीदवार के दस्तावेजों पर एक नहीं बल्कि छह अलग-अलग जिलों में काम कर रहे हैं। सभी का नाम, पिता का नाम और जन्मतिथि एक ही है, लेकिन तैनाती स्थल और पते अलग-अलग हैं। लगातार इन लोगों के नाम से हर माह वेतन दिया जा रहा है, लेकिन विभागीय अधिकारी आंखे मूंदे बैठे हैं।
मामले का खुलासा एक आरटीआई से हुआ है। अन्यथा विभाग के अधिकारियों को जानकारी भी नहीं कि सरकारी खजाने की लूट हो रही है। आरटीआई से खुलासा होते ही विभाग में हड़कंप मच गया है।
2016 में हुई थी भर्ती
उत्तर प्रदेश में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के जरिए स्वास्थ्य विभाग में मई ई 2016 में एक्सरे टेक्नीशियन के 403 पदों पर भर्ती हुई थी। इस भर्ती की सूची मानव संपदा पोर्टल पर दर्ज है। यह भर्तियां तत्कालीन निदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं डॉ. एसपी त्रिपाठी के आदेश पर 403 पदों पर नियुक्तियां हुईं। अलग-अलग जिलों में नियुक्त अभ्यर्थियों की सूची पोर्टल पर दर्ज है। इसमें अर्पित सिंह पुत्र अनिल कुमार सिंह जन्म 12 जून 1989 के नाम से छह तैनाती मिली हैं।
मानव सम्पदा पोर्टल में क्रमांक 80 पर र
जिस्ट्रेशन क्रमांक 50900041299 पर अर्पित सिंह पुत्र अनिल कुमार सिंह, जन्म तिथि 12 जून 1989 तैनाती स्थल, मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय हाथरस दर्ज है। ये अभी हाथरस के सीएचसी मुरसान में कार्यरत हैं। लेकिन स्वास्थ्य विभाग के मानव सम्पदा पोर्टल पर अर्पित सिंह के नाम पर छह लोग नौकरी कर रहे हैं। ये सभी शामली, रामपुर, फर्रूखाबाद, बांदा, बलरामपुर, और बदायूं में कार्यरत हैं।
9 साल में 3 करोड़ से ज्यादा का वेतन
वर्तमान में इन कर्मचारियों की सैलरी करीब 70 हजार रूपए महीना है। यदि 50 हजार रूपये मासिक वेतन भी मान लिया जाए तो इन कर्मचारियों ने करीब सवा तीन करोड़ रूपये पिछले 9 साल में गलत तरह से वेतन उठाया है। आंखे मूंदे बैठे अफसर अब मानव सम्पदा पोर्टल में और ऐसे कर्मचारियों का डेटा ढूंढ़ रहे हैं।
मामले में महानिदेशक चिकित्सा एवं स्थ्वास्थ्य डॉ. रत्न लाल सुमन, का कहना है कि “नियुक्त कर्मियों का नाम, पिता का नाम और जन्मतिथि समान होना संदेह पैदा करता है। जांच कराई जाएगी। यदि फर्जी नियुक्ति होगी तो दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।”
इनमें से एक अर्पित सिंह सीएचसी मुस्सान हाथरस में तैनात हैं जिनका पता प्रतापनगर, शाहगंज, वाराणसी है। दूसरे अर्पित सिंह बिसलापुर रामपुर में तैनात हैं इनका भी पता प्रतापनगर, शाहगंज, वाराणसी है। तीसरे अर्पित सिंह जिला अस्पताल मैनपुरी में तैनात हैं और इनका पता नगला सुभानी, मैनपुरी दर्ज है। चौथे अर्पित सिंह बिसौली बदायूं में तैनात हैं और इनका भी पता नगला सुभानी, मैनपुरी दर्ज है। पांचवे अर्पित सिंह स्वास्थ्य केंद्र फर्रुखाबाद में तैनात हैं जिनका पता C-22 प्रतापनगर, शाहगंज वाराणसी दर्ज है। जबकि छठे अर्पित सिंह जिनका रजिस्ट्रेशन क्रमांक – 80 पर 50900041299 है और उनकी, तैनाती मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय हाथरस में सीएचसी मुरसान दर्ज है।
शिक्षा विभाग की अनामिका शुक्ला का मामला
इससे पहले उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग में 2020 में अनामिका शुक्ला के नाम से सामने आए फर्जीवाड़े ने पूरे शिक्षा तंत्र में हड़कंप मचा दिया था। इस घोटाले में एक ही व्यक्ति के नाम और दस्तावेजों का उपयोग कर प्रदेश के 25 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों (KGBV) में फर्जी शिक्षक नियुक्तियां की गईं। इन नियुक्तियों के जरिए 13 महीनों में लगभग एक करोड़ रुपये का वेतन अवैध रूप से निकाला गया। यह मामला तब प्रकाश में आया जब बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों को एक ही नाम से कई जिलों में शिक्षकों की नियुक्ति और वेतन भुगतान की जानकारी मिली।
जांच में खुलासा हुआ कि इस घोटाले में फर्जी आधार कार्ड, पैन कार्ड और अन्य पहचान पत्रों का इस्तेमाल किया गया। कई मामलों में धुंधली तस्वीरों और गलत बायोमेट्रिक डेटा का सहारा लिया गया, जिससे एक ही व्यक्ति के नाम पर अलग-अलग जिलों में वेतन ट्रांसफर हो सके। उदाहरण के तौर पर, अनामिका शुक्ला के नाम से गोंडा, बागपत, प्रयागराज, और अन्य जिलों में एक साथ नियुक्तियां दिखाई गईं, जबकि वास्तव में कोई एक व्यक्ति इन सभी जगहों पर कार्यरत नहीं था। बैंक खातों की जांच में पता चला कि ये खाते भी फर्जी दस्तावेजों पर खोले गए थे, और वेतन का पैसा इन खातों में नियमित रूप से ट्रांसफर हो रहा था।
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए उत्तर प्रदेश की विशेष जांच टीम (एसटीएफ) को जांच सौंपी गई। एसटीएफ ने पाया कि यह घोटाला केवल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं था, बल्कि एक संगठित गिरोह इसमें शामिल था, जिसमें विभाग के कुछ कर्मचारी, बिचौलिए और बाहरी लोग मिलकर फर्जी नियुक्तियां कर रहे थे।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप पांडेय, जिन्होंने इस मामले को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, ने दावा किया कि यह घोटाला शिक्षा विभाग में डेटा लीक और भ्रष्टाचार का परिणाम है। उन्होंने आरोप लगाया कि बिना बायोमेट्रिक सत्यापन और उचित जांच के शिक्षकों की भर्ती और वेतन वितरण की प्रक्रिया में भारी खामियां हैं, जिसका फायदा उठाकर यह लूट की जा रही थी।
जांच के दौरान यह भी सामने आया कि कई फर्जी शिक्षकों ने स्कूलों में कभी हाजिरी नहीं लगाई, फिर भी उनके नाम पर वेतन निकाला गया। कुछ मामलों में स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत की भी बात सामने आई।