Health

एनीमिया पर वार, मिलकर करेंगे हीमोग्लोबिन 12 के पार

विशेषज्ञों ने दी गर्भवती का हीमोग्लोबिन बढ़ाने की सलाह

Lucknow: उत्तर प्रदेश में 46 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया (Anemia) से जूझ रही हैं, जो मां और शिशु दोनों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है। इस समस्या से निपटने के लिए गर्भवती के साथ परिवार वालों को भी प्रयास करना होगा। विशेषज्ञों ने सलाह दी कि गर्भवती को ऐसे पोषक तत्व दिए जाएं जिससे उसका हीमोग्लोबिन 12 से ऊपर हो सके। ऐसा करके ही एनीमिया के खतरे से बचा जा सकता है।

बुधवार को स्थानीय होटल में स्वास्थ्य विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग और केजीएमयू के सहयोग से एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी में प्रमुख सचिव स्वास्थ्य अमित घोष ने कहा कि महिला शिक्षक, प्रधान, स्वयं सहायता समूह की महिलाएं और आंगनबाड़ी कार्यकत्रियां समुदाय स्तर पर लीडर की भूमिका निभाकर एनीमिया के प्रति जागरूकता बढ़ाने की कोशिश करें। सभी ने शपथ ली कि गर्भवती व नवजात की सेहत सुधारने के लिए लोगों को जागरुक करेंगे ताकि एनीमिया के खतरे को टाला जा सके।

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श्री घोष ने कहा कि 2047 तक विकसित भारत बनने में एनीमिया एक बड़ा अवरोध है। शासन ने सभी आवश्यक व्यवस्थाएं कर दी हैं, लेकिन असल फर्क जमीनी स्तर पर सामूहिक प्रयासों से आएगा। उन्होंने महिला शिक्षकों, प्रधानों और आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों से अपील की कि वे वंचित और पिछड़े समुदायों की महिलाओं तक पहुंचें और उन्हें एनीमिया से बचाव के उपाय बताएं। संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने कहा कि जागरूकता, व्यवहार परिवर्तन, रणनीतिक मीडिया सहयोग और सामुदायिक नेतृत्व के जरिए ही प्रदेश एनीमिया पर वार कर पाएगा।

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टेक होम राशन अभियान से पहुंच रहा पोषण

महिला एवं बाल विकास विभाग की प्रमुख सचिव लीना जौहरी ने कहा कि विभाग टेक होम राशन (टीएचआर), पोषण अभियान और पोषण पाठशालाओं के माध्यम से माताओं और बच्चों तक पोषक आहार व जागरूकता पहुंचा रहा है। इसके अलावा हर बच्चे से छह माह में सात बार संपर्क कर स्थिति जानने की प्रक्रिया भी अपनाई जा रही है।

9.7 प्रतिशत गर्भवती ही ले पाती हैं 180 दिन तक आईएफए

केजीएमयू की कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद ने बताया कि सिर्फ 22.3 फीसद गर्भवती महिलाएं 100 दिनों तक आयरन-फोलिक एसिड (आईएफए) ले पाती हैं और 9.7 प्रतिशत ही 180 दिनों तक इसका सेवन करती हैं, जबकि यह न्यूनतम जरूरत है। उन्होंने कहा कि बच्चों (66.4′) और प्रजनन आयु की महिलाओं (50.6′) में एनीमिया की उच्च दर से राज्य की स्वास्थ्य और आर्थिक प्रगति पर गंभीर असर पड़ रहा है।

क्वीनमैरी अस्पताल की विभाागाध्यक्ष डॉ. अंजू अग्रवाल ने कहा कि इस बहुआयामी चुनौती से निपटने के लिए वैज्ञानिक मार्गदर्शन, निर्णायक सरकारी कार्रवाई और सामुदायिक भागीदारी का साझा प्रयास जरूरी है। आईसीडीएस की उपनिदेशक अनुपमा सानडिल्य ने मातृ-शिशु पोषण में पिता की सक्रिय भागीदारी बढ़ाने और किशोरियों का एनीमिया टेस्ट कराने की सिफारिश की। वहीं स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की संयुक्त निदेशक डॉ. शालू गुप्ता ने आईएफए सप्लाई और रियल टाइम मॉनिटरिंग को मजबूत करने पर बल दिया।

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