भारत का स्वाभाविक राष्ट्रभाव और कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति

ई रिक्शा हो, ऑटो रिक्शा हो, बाइक हो, सड़क पर लोग बड़ी संख्या में तिरंगा लगाए घूम रहे हैं। ये देश की वह जनता है जो भारत राष्ट्र में, इसकी व्यवस्था में, इसके संसद में, इसके संविधान में, इसके लोकतंत्र में भरोसा रखती है। उन्हें तमाम शिकवा शिकायत है फिर भी इसकी व्यवस्था में उन्हें भरोसा है। वह वोट देने के लिए बड़ी संख्या में निकलते हैं। कभी किसी पार्टी को वोट डालते हैं, कभी किसी पार्टी को।
वह नेताओं को, राजनीतिक दलों को गालियाँ देते हैं लेकिन छोटी से छोटी घटना होने पर उन्हीं को फ़ोन मिलाते हैं, उन्हीं से आशा रखते हैं। कोर्ट में देर से निर्णय होते हैं, भीड़ मची हुई है लेकिन फिर भी बात बढ़ती है तो आदमी कहता है कि तुम्हें तो हम कोर्ट में देख लेंगे। इस राष्ट्र का प्रतीक चाहे वह राष्ट्रगान हो, राष्ट्रगीत हो, तिरंगा हो, हर आदमी सम्मान करता है। हर व्यक्ति इस राष्ट्र में कहीं सुदूर से सुदूर कोई बड़ी घटना हो, ऐसा दुखी होता है मानों उसके अपने घर की बात हो।
आतंकवाद की कोई घटना हो हर व्यक्ति इस तरह से क्रोधित होता है माने उसके घर में किसी ने घुसकर उसके अपने परिवार के किसी व्यक्ति को मार डाला हो। सीमा पर सेना के जवान वीरगति प्राप्त करते हैं तो देश ऐसा दुखी होता है मानों अपने घर का व्यक्ति छूट गया हो। कुंभ प्रयागराज में लगता है देश के कोने कोने से व्यक्ति उस जल में स्नान करने आता है, उस लगता है कि यह पुण्य छूट न जाये। भारत कोई प्रशासनिक राष्ट्र मात्र नहीं है। इस देश की सीमाएं इसकी संस्कृति से निर्धारित होती रही हैं।
राजा अलग, राज्य अलग, नियम अलग, संप्रभुता अलग परंतु राष्ट्र एक। राष्ट्र एक होने के लिए राज्य, राजा और नागरिकता का एक होना कभी नियम नहीं रहा। लोगों को फ़र्क़ भी नहीं पड़ता था कि कौन कहाँ का राजा है, वह बिना राज्य और राजा देखे अपने तीर्थ, व्रत, स्नान, दान का पालन करते रहे जैसे की संप्रभुता और राजा का राष्ट्र से कोई लेना देना न हो।
एक ऐसा राष्ट्र जहाँ पर सामान्य तौर पर गुलामी से पहले कभी भाषाई विवाद नहीं हुआ, नस्लीय विवाद नहीं हुआ। जहाँ के बच्चा बच्चा को पता था कि उसका राष्ट्र उसके राजा द्वारा शासित भूमि मात्र नहीं है बल्कि भारत राष्ट्र है, वहाँ पर अचानक कांग्रेस पार्टी, उसके समर्थक, उसके नेता इस राष्ट्र को चुनौती देने में लगे हैं। उन्हें लगता है कि वह इस राष्ट्र को, इस राष्ट्र की व्यवस्था को लंपटो की भीड़ खड़ा करके बर्बाद कर सकते हैं, जैसे कि यह कोई अस्वाभाविक राष्ट्र हो। कांग्रेस की सोच हमेशा से रही कि यह भारत देश तो उन्होंने पैदा किया सन 1947 में, उसके पहले तो यह देश था ही नहीं।
उनके सारे इतिहासकार, सारे चिंतन और यहाँ तक कि उनके नेता तक यह पचास साल से अधिक समय तक चिल्लाते रहे कि भारत भला राष्ट्र कब था, वो तो भला हो अंग्रेजों का जिन्होंने राष्ट्र बनाया और कांग्रेस ने इसे आज़ाद कराया। कांग्रेस की इसी घिनौनी सोच के कारण कांग्रेस के नेता, कार्यकर्ता और थिंक टैंक ख़ुद को इस घर का मालिक समझती रही। अब जब उन्हें यह पूर्ण विश्वास हो गया है कि वह सत्ता में दूर दूर तक नहीं आने वाले तो वह इस घर को गिरा देना चाहते हैं, समाप्त कर देना चाहते हैं और उसके बाद जो खण्डहर बचेगा, उस पर राज करना चाहते हैं। इसीलिए ये जब तब बांग्लादेश और श्रीलंका की धमकी दे रहे हैं।
यह राष्ट्र न बांग्लादेश है, न श्रीलंका है, इस देश के आम लोगों में इस राष्ट्र के प्रति एक स्वाभाविक जन्मजात प्रेम है। इस राष्ट्र को स्थिर रखने के लिए जो व्यवस्थाएं हैं, चाहे वह संसद हो, कोर्ट हो या अन्य संवैधानिक संस्थाएं उसके प्रति लोग सहज अनुराग रखते हैं। यदि कोई वोकल माइनॉरिटी जो वर्तमान में कांग्रेस में राहुल गांधी के नेतृत्व में एक छोटा सा धड़ा है यदि यह सपना देखता है कि वह संसद में भीड़ लेकर घुस जाएगा, प्रधानमंत्री आवास, राष्ट्रपति भवन, सुप्रीम कोर्ट को भीड़ के मदद से क़ब्ज़ा कर लेगा तो उनको औक़ात में रहना चाहिए नहीं तो तुम किसी बिल्डिंग में तो नहीं घुस पाओगे लेकिन तुम्हारे अंदर इस देश की राष्ट्रभक्त जनता ज़रूर भूसा भर देगी। जिस मॉब लिंचिंग का सपना एक वोकल माइनॉरिटी को दिखा रहे हो, यदि मैजॉरिटी ने करना शुरू कर दिया तो इस गिरोह का हाल रावण जैसा हो सकता है, यानी समूल विनाश।
राहुल गांधी के गलीज समर्थकों को इस तरह के नैरेटिव से बचना चाहिए, ऐसे नैरेटिव इन लोगों के लिए आत्महत्या जैसा साबित हो सकता है। भारत एक स्वाभाविक राष्ट्र है, हज़ारो साल से है, हज़ारो साल तक रहेगा। एक राष्ट्र के रूप में इसके अस्तित्व को कोई चुनौती नहीं दे सकता। यदि ऐसा कोई सोच भी रहा है तो वह अपनी मौत को आमंत्रण दे रहा है।