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Uttar Pradesh : बिजली विभाग में ठेकेदारी कर रहे रिटायर्ड जेई के निजीकरण पर रुख से जेई संगठन में घमासान

प्रबंधन के साथ रहना चाहते हैं ठेकेदारी कर रहे पुराने जेई- निजीकरण के मुद्दे पर जेई संगठन में दो मत

Lucknow: पावर कॉर्पोरेशन में जूनियर इंजीनियर (JE) के तौर पर कार्य कर चुके कई रिटायर्ड इंजीनियर अब ठेकेदारी और निजी कंपनियों में नौकरी कर रहे हैं। रिटायरमेंट के बाद भी इनका संगठन में दखल बना हुआ है, जिससे निजीकरण को लेकर संगठन में जबरदस्त खींचतान शुरू हो गई है। कुछ पूर्व पदाधिकारी निजीकरण का समर्थन कर रहे हैं, जबकि मौजूदा सदस्य इसके खिलाफ संघर्ष समिति के साथ खड़े हैं। इसी मतभेद ने JE संगठन को दो फाड़ में बाँट दिया है।

बीते एक सप्ताह से जूनियर इंजीनियर संगठनों के सोशल मीडिया ग्रुप पर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं। मई के आखिरी सप्ताह में जेई संगठन के पूर्व पदाधिकारी चेयरमैन यूपीपीसीएल आशीष गोयल से मिलने पहुंचे। उनके साथ संगठन के मौजूदा अध्यक्ष भी थे। निजीकरण को लेकर चल रहे विरोध पर जब संगठन और प्रबंधन के बीच बात हुई दोनों पदाधिकारियों ने खिलाफत के बजाय समर्थन पर हामी भरी। हालांकि यह कहा कि अन्तिम फैसला संगठन की हाई पावर कमेटी करेगी। अगले ही दिन हाई पावर कमेटी की बैठक इस मुद्दे पर बात हुई तो हंगामा शुरू हो गया।

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कुछ सदस्यों ने कहा कि जो रिटायर हो चुके हैं वो संगठन में हस्तक्षेप न करें। सदस्यों ने यहां तक आरोप लगा कि ठेकेदारी करने वाले तो चाहते ही हैं कि प्रबंधन के साथ मिलकर काम किया जाए ताकि उनके हित पूरे होते रहें। ज्ञात हो कि उक्त पूर्व जेई सहायक अभियंता के पद से रिटायर हुए हैं और इन दिनों टेलीकॉम कम्पनी के टॉवर लगवाने का ठेका लेता है। अन्य पूर्व पदाधिकारी जो अधिशासी अभियंता के पद से रिटायर हुए हैं और देश की जानी मानी टेलीकॉम कम्पनी में नौकरी कर रहे हैं।

वह अकेले नहीं है जो पावर कारपोरेशन से रिटायर होने के बाद निजी कम्पनी में जॉब कर रहे हैं कई अन्य सेवानिवृत्त अभियंता निजी घरानों के साथ काम करके लाखों रुपये की सैलरी पा रहे हैं। कुछ मुख्य अभियंता व अधीक्षण अभियंता स्तर के अधिकारी आगरा के टोरेंट में नौकरी कर रहे हैं। वह सभी चाहते हैं कि निजीकरण हो जाए और इसके लिए वह अपने पुराने साथियों को समय समय पर सुझाव भी दे रहे हैं।

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संघर्ष समिति के साथ नहीं जाना चाहते

जूनियर इंजीनियर संगठन का एक गुट ऐसा है जो संघर्ष समिति के साथ नहीं रहना चाहते। संघर्ष समिति मौजूदा समय में निजीकरण के आन्दोलन की मुख्य रूप से अगुवाई कर रहा है और समिति के संयोजक चाहते हैं कि अन्य सभी संगठन संघर्ष समिति के पीछे चलें। यह बात जेई को पसंद नहीं है। यही वजह है कि संगठन के सदस्य संघर्ष समिति का विरोध कर रहे हैं। हालांकि जेई संगठन में ऐसे लोग भी हैं जो संघर्ष समिति के समर्थक हैं और उसी के नेतृत्व में निजीकरण के विरोध में चल रहे आन्दोलन को आगे बढ़ाना चाहते हैं।

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सोशल मीडिया पर कहे अपशब्द

जेई संगठन के कई सोशल मीडिया ग्रुप हैं। निजीकरण के विरोध में रोजाना ग्रुप पर बयानबाजी होती है। ठेकेदारी करने वाले एक पुर्व जेई ने जब सोशल मीडिया पर लिखा कि प्रबंधन का साथ दिया जाए। निजीकरण होने से किसी जेई का नुकसान नहीं होगा तो हंगामा होने लगा। सदस्यों ने ठेकेदार बने पूर्व जेई को खूब अपशब्द कहे। कुछ ने यहां तक कह दिया कि अपनी नौकरी के समय खूब कमाई की थी और अब सभी को ज्ञान दे रहे हैं। यह सब सुनने के बाद पूर्व जेई ने चुप्पी साध ली है।

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