Religion

Krishna Narakasura story श्रीकृष्ण की 16,108 पत्नियों का अनसुलझा रहस्य: क्या वाकई में थे 1 लाख से अधिक पुत्र? जानिए पौराणिक कथा और आध्यात्मिक सत्य

Krishna 16108 wives story explained

Lord Krishna Wives Mystery : भगवान श्रीकृष्ण, जिन्हें हिंदू धर्म में विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है, न केवल अपनी लीला और ज्ञान के लिए प्रसिद्ध हैं, बल्कि उनके जीवन से जुड़ी कई रहस्यमयी कथाएं भी लोगों को आकर्षित करती हैं। जन्माष्टमी (Janmashtami) के अवसर पर उनकी चर्चा और बढ़ जाती है, खासकर उनकी 16,108 पत्नियों और लाखों पुत्रों की कहानी।

क्या यह मात्र एक मिथक है या इसमें कोई गहरा आध्यात्मिक महत्व छिपा है? पुराणों और महाभारत में वर्णित इन कथाओं को देखें तो पता चलता है कि श्रीकृष्ण के विवाह न केवल प्रेम या युद्ध से जुड़े थे, बल्कि धर्म की रक्षा और सामाजिक न्याय से भी प्रेरित थे। आइए, इस रहस्य की परतें खोलते हैं और समझते हैं कि वास्तव में उनकी कितनी पत्नियां थीं और क्यों उन्होंने इतने विवाह किए।

श्रीकृष्ण की जीवन कथा द्वापर युग की है, जहां उन्होंने कंस का वध कर मथुरा को मुक्त किया और द्वारका को अपनी राजधानी बनाया। उनकी पहली पत्नी रुक्मिणी थीं। कहा जाता है कि रूक्मिणी के साथ उन्होंने भागकर विवाह किया। विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं, लेकिन उनके भाई रुक्मी ने उनका विवाह शिशुपाल से तय कर दिया था। महाभारत के अनुसार, श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर उन्हें अपनी पत्नी बनाया। यह एक प्रेम विवाह का उदाहरण था, जो उनकी लीला का हिस्सा है।

श्रीकृष्ण की आठ मुख्य पत्नियां, जिन्हें पटरानियां कहा जाता है, पुराणों में विशेष रूप से उल्लिखित हैं। इनमें शामिल हैं: रुक्मिणी (प्रथम पत्नी), जांबवती (भालू राजा जांबवन की पुत्री, जिन्हें स्यमंतक मणि की घटना के बाद पत्नी बनाया), सत्यभामा (भूमिदेवी का अवतार, जिन्होंने नरकासुर वध में सहायता की), कालिंदी (यमुना देवी का रूप, जो तपस्या कर श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थीं), मित्रविंदा (अवंति की राजकुमारी), सत्या (कोसल की राजकुमारी), भद्रा (कैकेय की राजकुमारी), और लक्ष्मणा (मद्र की राजकुमारी)। ये आठ पत्नियां उनके गृहस्थ जीवन का आधार थीं, और प्रत्येक विवाह में कोई न कोई पौराणिक घटना जुड़ी हुई है। उदाहरण के लिए, कालिंदी से विवाह तब हुआ जब श्रीकृष्ण अर्जुन के साथ वन विहार पर थे, और कालिंदी तपस्या कर रही थीं।

16108 रानियों का रहस्‍य

असली रहस्य शुरू होता है 16,100 अतिरिक्त विवाहों से, जो कुल मिलाकर 16,108 पत्नियां बनाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह कहानी नरकासुर नामक दैत्य (Narakasura and Krishna story) से जुड़ी है। नरकासुर, जो भूमिदेवी का पुत्र था, ने अपनी मायावी शक्तियों से देवताओं को पराजित कर इंद्र, वरुण, अग्नि आदि को परेशान कर रखा था। उसने विभिन्न राज्यों की 16,100 राजकुमारियों और संतों की स्त्रियों को कैद कर लिया था, ताकि उनकी बलि देकर अमर हो सके। जब अत्याचार चरम पर पहुंचा, तो देवता और ऋषि-मुनि श्रीकृष्ण के पास पहुंचे। एक श्राप के कारण नरकासुर की मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथों हो सकती थी, इसलिए श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाकर युद्ध किया और नरकासुर का वध कर दिया। इसके बाद, उन्होंने सभी कैद कन्याओं को मुक्त कराया।

मुक्त होने के बाद ये कन्याएं अपने घर लौटीं, लेकिन समाज और परिवार ने उन्हें चरित्रहीन मानकर अपनाने से इनकार कर दिया। उस युग में स्त्रियों की सामाजिक स्थिति ऐसी थी कि कैद से मुक्त होने पर भी उन्हें बहिष्कृत कर दिया जाता था। असहाय कन्याओं ने श्रीकृष्ण से मदद मांगी, और भगवान ने धर्म की रक्षा के लिए 16,100 प्रतिरूप धारण कर एकसाथ सभी से विवाह कर लिया। कुछ कथाओं में इसे भूमासुर (नरकासुर का ही दूसरा नाम) की कहानी से जोड़ा जाता है, जहां श्रीकृष्ण ने इन कन्याओं को सुरक्षा प्रदान की। यह विवाह सामूहिक रूप से हुआ, और श्रीकृष्ण अपने दिव्य रूपों में प्रत्येक पत्नी के साथ रहते थे, कभी किसी को वंचित नहीं किया।

क्या यह वास्तविक विवाह थे या मात्र प्रतीकात्मक? कुछ वैकल्पिक व्याख्याओं के अनुसार, श्रीकृष्ण ने इन कन्याओं से विवाह नहीं किया, बल्कि उन्होंने लोक-लाज के भय से श्रीकृष्ण को अपना पति मान लिया और उनकी सेवा में लग गईं। शास्त्रों में इन्हें पटरानियां कहा गया है, लेकिन मुख्य रूप से आठ ही पटरानियां मानी जाती हैं। यह कथा श्रीकृष्ण की करुणा और न्यायप्रियता को दर्शाती है, जहां उन्होंने समाज द्वारा ठुकराई गई स्त्रियों को सम्मान दिया। आध्यात्मिक दृष्टि से, यह जीवात्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है, जहां 16,108 पत्नियां 16,108 कलाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, और श्रीकृष्ण पूर्ण पुरुषोत्तम हैं।

पुराणों के अनुसार, महाभारत के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण की आठ मुख्य पत्नियों (पटरानियों) से कुल 80 पुत्र हुए थे। प्रत्येक पत्नी से 10-10 पुत्र उत्पन्न हुए। इनमें प्रमुख पुत्रों में प्रद्युम्न, चारुदेश्न, सुशेन, और साम्ब आदि शामिल हैं। साथ ही एक एक पुत्री पुत्री भी हुई।

दूसरी तरफ यह भी माना जाता है कि श्रीकृष्ण की प्रत्येक पत्नी से 10 पुत्र और 1 पुत्री हुई। इस गणना से कुल 1,61,080 पुत्र और 16,108 पुत्रियां थीं। यह संख्या आश्चर्यजनक लगती है, लेकिन पौराणिक ग्रंथों में इसे श्रीकृष्ण की दिव्य शक्ति से जोड़ा जाता है। वे अपने प्रतिरूपों से प्रत्येक परिवार का पालन करते थे, और कभी किसी को अभाव नहीं होने देते थे। यह परिवार भारत का सबसे बड़ा परिवार माना जाता है, जहां श्रीकृष्ण ने गृहस्थ धर्म का पूर्ण पालन किया।

श्रीकृष्ण की यह कथा हमें सिखाती है कि धर्म की रक्षा के लिए कभी-कभी असाधारण कदम उठाने पड़ते हैं। जन्माष्टमी पर जब हम उनकी पूजा करते हैं, तो यह याद रखना चाहिए कि श्रीकृष्‍ण का जीवन प्रेम, न्याय और आध्यात्म का संगम था। राधा से उनका प्रेम अविवाहित रहा, लेकिन पत्नियों के प्रति उनका समर्पण अनुकरणीय है। यदि आप गहराई से देखें, तो यह रहस्य मात्र संख्याओं का नहीं, बल्कि दिव्य लीला का है, जो हमें जीवन के हर पहलू में संतुलन सिखाता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button