UP

उत्‍तर प्रदेश में 5000 परिषदीय स्‍कूल होंगे बंद, बच्‍चे टीचर पास के स्‍कूलों में होंगे समायोजित, टीचर्स से ली जा रही है सहमति

LUCKNOW: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार राज्य में स्कूली शिक्षा व्यवस्था को प्रभावी और संसाधन-केंद्रित बनाने के उद्देश्य से एक बड़ा कदम उठाने जा रही है। इसके तहत कक्षा 1 से 8 तक संचालित करीब 5,000 परिषदीय स्कूलों को बंद कर नजदीकी स्कूलों में विलय करने की योजना है। यह मर्जर मुख्य रूप से उन विद्यालयों के लिए है जहां छात्रों की संख्या 50 से कम है।

हालांकि सरकार का दावा है कि इससे शैक्षिक गुणवत्ता और संसाधनों के उपयोग में सुधार होगा, लेकिन शिक्षक संगठनों, अभिभावकों और विपक्षी पार्टियों में में व्यापक विरोध को जन्म दिया है, जिससे शिक्षा क्षेत्र में एक नई बहस शुरू हो गई है।

मर्जर की पृष्ठभूमि और सरकार की मंशा

राज्य के बेसिक शिक्षा विभाग के अनुसार, उत्तर प्रदेश में कुल 27,764 परिषदीय स्कूल संचालित हैं, जिनमें से लगभग 5,000 स्कूल ऐसे हैं जहाँ छात्रों की संख्या बेहद कम है। सरकार का मानना है कि इन स्‍कूलों का संचालन आर्थिक और प्रशासनिक रूप से अव्यावहारिक है। शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा ने सभी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों (BSA) को ऐसे स्कूलों की सूची तैयार करने और मर्जर की विस्तृत कार्ययोजना बनाने के निर्देश दिए हैं।

यह भी पढ़ें: FASTag Annual Pass: अब साल भर के टोल का चार्ज सिर्फ 3000 रूपये, जानें विस्‍तार से

शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा ने इस संबंध में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों (बीएसए) को निर्देश दिए हैं कि वे 50 से कम छात्रों वाले स्कूलों की सूची तैयार करें और मर्जर के लिए एक कार्ययोजना प्रस्तुत करें। यह प्रक्रिया राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF) 2020 के तहत स्कूलों के बीच सहयोग और संसाधनों के साझा उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू की गई है।

स्‍मार्ट क्‍लास बनाने का दावा

सरकार का दावा है कि मर्जर के बाद नजदीकी स्कूलों में बेहतर सुविधाएं, जैसे स्मार्ट क्लासरूम, विज्ञान प्रयोगशालाएं, और खेल के मैदान, प्रदान किए जाएंगे। इसके अलावा, हर जिले में मुख्यमंत्री अभ्युदय कंपोजिट विद्यालय (कक्षा 1 से 8 तक) और मॉडल कंपोजिट स्कूल (कक्षा 1 से 12 तक) की स्थापना की जा रही है, जहां 450 से 1,500 छात्रों के लिए आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध होंगी। इन स्कूलों पर करीब 30 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है।

यह भी पढ़ें: विद्यालयों का मर्जर ही बेसिक शिक्षा की बड़ी ‘मर्ज’: विजय बंधु

शिक्षक संगठनों ने शुरू किया विरोध

सरकार के इस कदम का शिक्षक संगठनों और स्थानीय समुदायों द्वारा कड़ा विरोध किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश प्राइमरी शिक्षक संघ के अध्यक्ष योगेश त्यागी ने इसे शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 और बाल संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन करार दिया है। उनका कहना है कि स्कूलों के मर्जर से बच्चों, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब परिवारों के बच्चों को नुकसान होगा, क्योंकि स्कूलों की दूरी बढ़ जाएगी। वर्तमान में एक से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित स्कूल मर्जर के बाद पांच किलोमीटर या उससे अधिक दूर हो सकते हैं, जो गरीब बच्चों के लिए पहुंच से बाहर हो सकता है।

यह भी पढ़ें: GeM पर यूपी बना अग्रणी राज्य, केंद्र सरकार ने यूपी मॉडल को सराहा

उत्तर प्रदेश महिला शिक्षक संघ की अध्यक्ष सुलोचना मौर्य ने भी चिंता जताई कि ग्रामीण बच्चों की शिक्षा बाधित होगी और मर्जर से शिक्षकों के प्रमोशन के अवसर भी कम होंगे। उनका तर्क है कि कई स्कूलों में कार्यवाहक प्रधानाध्यापक हैं, जिन्हें कोई अतिरिक्त भत्ता नहीं मिलता, और मर्जर से इन पदों में और कमी आएगी। शिक्षक संगठनों ने #SaveVillageSchools जैसे अभियानों के जरिए सोशल मीडिया पर भी अपनी आवाज उठाई है, जिसमें ग्रामीण स्कूलों को बचाने की मांग की जा रही है।

सरकार ने आरोपों को किया खारिज

सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि मर्जर का उद्देश्य शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करना है, न कि उसे बाधित करना। बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने दावा किया कि 27,000 स्कूलों को बंद करने की पिछली खबरें भ्रामक थीं, और वर्तमान में केवल 50 से कम छात्र संख्या वाले करीब 5000 स्कूलों पर विचार किया जा रहा है। विभाग ने यह भी स्पष्ट किया कि मर्जर से पहले स्थानीय प्राधिकारियों, शिक्षकों, और समुदायों के साथ परामर्श किया जाएगा ताकि किसी भी तरह की असुविधा से बचा जा सके। इसके लिए 14 नवंबर तक जिला स्तर पर रिपोर्ट तैयार करने का समय दिया गया है, और उसके बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा।

मौजूदा स्थिति और अगले कदम

वर्तमान में, मर्जर की प्रक्रिया शुरू होने की खबरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं, और कई जिलों में, जैसे सुल्तानपुर में 444 स्कूलों की पहचान की गई है जहां छात्र संख्या 50 से कम है। लखनऊ में ऐसे करीब 133 स्‍कूल हैं जिन्‍हें मर्ज किया जाना है। हालांकि अभी तक कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं हुआ है, और सरकार ने इसे एक विचाराधीन प्रक्रिया बताया है। शिक्षक संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि यह कदम लागू हुआ, तो वे आंदोलन तेज करेंगे और मांगे पूरी ना होने पर कोर्ट का सहारा लिया जाएगा।

उत्तर प्रदेश में स्कूलों के मर्जर का मुद्दा शिक्षा के भविष्य और ग्रामीण बच्चों के अधिकारों के बीच एक जटिल संतुलन बन गया है। सरकार इसे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और संसाधन प्रबंधन का हिस्सा मान रही है, जबकि विरोधी इसे ग्रामीण शिक्षा और शिक्षकों के हितों के खिलाफ बता रहे हैं। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि सरकार इस मुद्दे पर किस दिशा में आगे बढ़ती है और स्थानीय समुदायों की चिंताओं को कैसे संबोधित करती है। शिक्षा विभाग की अगली बैठक और जिला रिपोर्टें इस प्रक्रिया की दिशा तय करेंगी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button