स्मार्ट प्रीपेड मीटर पर यूपी में थम नहीं रहा विवाद
Lucknow: केन्द्र सरकार ने यूपी में स्मार्ट प्रीपेड मीटर (smart prepaid meter) के लिए 18,885 करोड़ रुपये स्वीकृत किए थे। इतनी ही रकम का टेण्डर किया जाना था। मगर पावर कारपोरेशन (UPPCL) के अफसरों ने इसमें बढ़ोतरी करते हुए 27,342 करोड़ रुपये में टेंडर जारी कर दिया। करीब 8,457 करोड़ रुपये अधिक का टेण्डर जारी करने के लिए कारपोरेशन ने न तो केन्द्र से अनुमोदन लिया और न ही विद्युत नियामक आयोग से। अब टेण्डर को लेकर विवाद बढ़ा तो अफसर जवाब देने को तैयार नहीं है।
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि टेण्डर में जो अतिरिक्त राशि बढ़ाई गई है उसे न तो केंद्र सरकार वहन करेगी और न ही राज्य सरकार। ऐसे में कारपोरेशन करीब 8,457 करोड़ रुपये का इंतजाम कहां से करेगा इसको अधिकारी भी स्पष्टï नहीं कर रहे हैं। अगर सरकार ने पैसा न दिया तो इस धनराशि को किसी न किसी रास्ते टैरिफ में पास ऑन कर दिया जाएगा जिसका खामियाजा उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ेगा।
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उधर नियामक आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि केंद्र सरकार की गाइडलाइंस के अनुसार स्मार्ट प्रीपेड मीटर की लागत उपभोक्ताओं से नहीं वसूली जाएगी। बावजूद इसके पावर कारपोरेशन ने नए कनेक्शन पर स्मार्ट प्रीपेड मीटर को अनिवार्य कर दिया है। इस प्रकार की भी खबरें आ रही हैं कि आरडीएसएस योजना के तहत खरीदे गए मीटरों का भुगतान अब आम उपभोक्ताओं से वसूला जा रहा है। यह नियामक आयोग के आदेशों और संविधान दोनों के खिलाफ है। योजना के तहत आए मीटर फ्री में लगाए जाने थे।
उड़ीसा मॉडल की बात करते हैं, लेकिन उसे मानते नहीं
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि निजीकरण को लेकर पावर कारपोरेशन उड़ीसा मॉडल की बात करता है। मगर उसे मानते नहीं ।उड़ीसा में प्रीपेड मीटर अनिवार्य नहीं हैं। वहां के ऊर्जा विभाग ने सार्वजनिक रूप से स्पष्ट किया है कि उपभोक्ता अपनी सुविधा के अनुसार प्रीपेड या पोस्टपेड मीटर का चुनाव कर सकते हैं। साथ ही यदि कोई पुराना मीटर सही स्थिति में है और गारंटी अवधि (5 साल) में है, तो उसे बदला नहीं जाएगा।
पावर कारपोरेशन करें पुनर्विचार
कारपोरेशन को चेतावनी देते हुए वर्मा ने कहा कि अगर वह अपने असंवैधानिक आदेश को वापस नहीं लेता, तो विद्युत उपभोक्ता परिषद आंदोलन का रास्ता अपनाएगी और विरोध को और तेज किया जाएगा। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए परिषद लगातार सरकार और निगम से जवाब मांग रही है, लेकिन अब तक कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं मिला है।