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उत्तर प्रदेश: बेलगाम नौकरशाही, ठाकुरवाद के आरोप, ठहराव की शिकार भाजपा के लिए 2027 चुनाव से पहले बड़ा खतरा?

उत्तर प्रदेश भाजपा इस समय एक ठहराव का शिकार हो चुकी है। राष्ट्रीय नेतृत्व में परिवर्तन होना था, लेकिन वह प्रक्रिया बिलकुल उसी पर रुक गयी है, इसलिए उत्तर प्रदेश के भीतर भीतर भी संगठन में होने वाले बदलाव अनिर्णय के शिकार हैं. कैबिनेट में विस्तार भी होना था लेकिन जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है, दौड़ भाग करने वाले लोग भी अब थक चुके हैं। आशा की जा रही है अक्टूबर के पहले सप्ताह में कुछ महत्वपूर्ण निर्णय हो सकता है परन्तु एक एक दिन जैसे जैसे निकलता जा रहा है, वैसे वैसे जमीन पर स्थितियां खराब होती दिखाई पड़ रही हैं। तमाम आयोग, निगम, नामित पद खाली पड़े हैं लेकिन उन पर भी नियुक्तियां अटक गयी हैं।

महत्वपूर्ण संख्या वाली पिछड़ी जातियों में तेज़ी से सपा की तरफ झुकाव बढ़ रहा है। लोधी समाज के अतिरिक्त किसी भी महत्वपूर्ण प्रभाव वाले पिछड़े जाति का वोटर बहुसंख्य में भाजपा के साथ नहीं है, और यदि यहीं स्थिति बनी रहती है तो लोध समाज का भी झुकाव भी तेज़ी से समाजवादी पार्टी की तरफ बढ़ सकता है। यह अच्छी बात है कि सवर्ण समाज और अति पिछड़ा अभी भी मज़बूती से भाजपा के साथ बना हुआ है। दलित समाज का एक बड़ा हिस्सा अभी बीते चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गया है। जैसी मुझे सूचना है कि 2027 के विधानसभा चुनाव में सपा बड़े पैमाने पर जनरल सीटों पर भी दलित वर्ग के लोगों को टिकट देने जा रही है, यदि ऐसा होता है तो भाजपा का भविष्य पूरी तरह से इस पर निर्भर हो जायेगा कि बसपा का प्रदर्शन कैसा रहता है। यदि बसपा से भाजपा का गठबंधन हो जाता है, उस स्थिति में सपा के वापसी का आसार एकदम से टल जायेगा, लेकिन यदि बहन जी अकेले लड़ती हैं और उनका मत प्रतिशत 10% से काम पर सिमट जाता है तो सपा के लिए यह स्वर्णिम मौका होगा।

कुछ लोगों का मानना है कि मुख्यमंत्री श्री योगी पर ठाकुरवाद के आरोपों ने उनकी छवि को धूमिल किया है, लेकिन तमाम विधायक और संभावित उम्मीदवार इस समय सर्वे कराना शुरू कर चुके हैं। यह आरोप सोशल मीडिया पर जितने प्रमुखता से उपस्थित हैं, जमीन पर उतना सर्वे में नहीं आ रहे हैं। यह बात सही है कि ठाकुर समाज के कुछ अति शुभचिंतक लोग उनको हिन्दू नेता से अब ठाकुर नेता बनाकर अपने मूर्खता और चरण चाटूता में उनके कद को लगातार छोटा करने में लगे हैं परंतु उसका प्रभाव न तो मेन स्ट्रीम मीडिया में है और न ही जमीन पर। लेकिन यदि सपा इस मुद्दे को आंदोलन स्तर पर जमीन पर उतारने का प्रयास करती है तो संगठन को इन अति शुभचिंतकों पर लगाम लगानी होगी वरना ये योगी जी को एक जाति वर्ग का नेता साबित करने में निकट भविष्य में सपा के सबसे बड़े सहयोगी बनने को आतुर हैं।

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भाजपा के पास कुछ और दाव स्पष्ट रूप से बचे हुए हैं जिसमे से एक महत्वपूर्ण विषय है जातिगत जनगणना, इसका भी समय ठीक उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले ही तय किया गया है। जातिगत जनगणना समाज में आरक्षण के नए पिटारे को खोलेगा। मैंने पहले भी इस पर लिखा है जिस पर तमाम लेखकों ने तथ्य के आधार पर तो नहीं लेकिन मेरी जाति के आधार पर अवश्य विरोध किया है। मैंने पूर्व में लिखा है कि जैसे ही जातिगत जनगणना होगा, वैसे ही आरक्षण कि सीमा 60% से ऊपर जाने के लिए आंदोलन और राजनितिक मांग तेज़ी पकड़ने लगेगी और जब किसी विचार का समय आ जाता है तो वह अपने आप को कराकर दम लेता है।

आरक्षण की सीमा महज तीन दशक में 37% तक बढ़ी हैं, तमाम विरोध प्रदर्शन हुए लेकिन देखते ही देखते यह आरक्षण 23% से 60% पहुंच चुका है। मुझे स्पष्ट दिख रहा है कि यदि सवर्ण समाज ने समझदारी नहीं दिखाई तो यह 25% और बढ़ने वाला है। लेकिन यदि सवर्ण समाज प्रतिक्रिया भाव के बजाय अपने लिए 15% और जातिगत आरक्षण कि मांग करे तो यह वृद्धि वह 15% पर रोकने में सफल हो सकते हैं। लेकिन फ़िलहाल जिस तरह से सवर्ण समाज में चिंतन और आने वाले स्थितियों के प्रति तैयारी का अभाव दिख रहा है, वहां इस तरह की कोई चर्चा आगे बढ़ेगा, मुझे दिखाई नहीं पड़ रहा। उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले यह मुद्दा बहुत बड़ा उथल पुथल मचाने वाला है। महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा उस समय कोई कठोर निर्णय कर पाती है या नहीं।

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मेरा मानना है कि यदि भाजपा सवर्ण समाज के लिए 25% एक्सक्लूसिव आरक्षण और बाकी समाज से क्रीमीलेयर हटाकर सबको अपने अपने कोटे से आने को कहे और पिछडो में अतिपिछड़ों का आरक्षण अलग कर दे, तो इस देश में न केवल आरक्षण का औचित्य समाप्त हो जायेगा बल्कि इसके आधार पर लगातार चल रही राजनीति, सवर्ण समाज का डेमोनाइज़ेशन और दलित समाज के प्रति नकारात्मक भाव भी किनारे लगना शुरू हो जाएगा। महत्वपूर्ण प्रश्न अभी भी यह है कि सवर्ण समाज में फ़िलहाल गहरे चिंतन का अभाव क्या भाजपा को ऐसा करने की स्थिति में ला पायेगा?

उत्तर प्रदेश में फ़िलहाल एक और मुद्दा भाजपा के लिए चिंता का विषय बना हुआ है, और वह है नौकरशाही का अनियंत्रित हो जाना। उत्तर प्रदेश में बेलगाम नौकरशाही आम जनता से जहा केवल वसूली करने में व्यस्त है, वही भाजपा के कार्यकर्ताओं और सहयोगियों के प्रताड़ना में व्यस्त है। विधायकों की शिकायत यह है की उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं है, वहीं एक बड़ा तबका यह मानता है की मुख्यंमत्री जी ने इस विषय पर विशेष ध्यान दिया हुआ है पिछले कुछ महीने से और प्रशासन में उनकी सुनवाई बढ़ी है परन्तु ये जनप्रतिनिधि अपना काम तो निकलवा ले रहे हैं लेकिन जब आम जनता का काम होता है तो अपने अकर्मण्यता का ठीकरा मुख्यमंत्री पर फोड़ देते हैं। ये दोनों स्थितियां ठीक नहीं हैं और इसमें सुधार की आवश्यकता है।

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उत्तर प्रदेश का 2027 विधानसभा चुनाव न केवल प्रदेश के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि देश के आने वाले राजनीति के लिए भी बहुत महत्त्व का है, ऐसे में पार्टी, संगठन, सरकार और कार्यकर्ताओं को जल्द से जल्द उन मुद्दों पर विचार करके समाधान करना होगा, जो स्थिति को लगातार खराब करते जा रहे हैं।

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Dr Bhupendra Singh

Writer (The Common Sense), Clinical Hematologist, General Secretary Shri Guru Gorakhnath Sewa Nyas, Nation intellectual cell coordinator @NMOBharat

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