मंथन

भारतीय सााहित्‍य के अनन्‍य उपासक रविन्‍द्र नाथ टैगोर

भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार संगीतकार, शिक्षाविद एवं दार्शनिक के रूप में जाने जाते हैं। वे एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनींः भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बाँग्ला’। वे भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण के स्‍तम्‍भ थे। उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक और राष्ट्रीय आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाई थी। वे वर्ष 1913 में अपने कविता संग्रह गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले एशियाई व्यक्ति बने।

रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी, बांग्ला परिवार में हुआ। रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता देवेंद्रनाथ टैगोर समाज के तथा धर्म के कार्यों में सेवा देते थे। टैगोर की माता का नाम शारदा देवी था। देवेंद्रनाथ टैगोर तथा शारदा देवी की तेरहवीं संतान रवीन्द्रनाथ टैगोर थे। टैगोर ने 1 मार्च 1874 को मृणालिनी देवी से विवाह किया। विवाह के वक्त उनकी आयु मात्र 10 वर्ष थी। टैगोर तथा मृणालिनी के 5 बच्चे हुए। 1891 में महज 29 वर्ष की आयु में एक बीमारी के चलते मृणालिनी टैगोर का साथ छोड़ कर चली गई।

उनकी स्कूल की पढ़ाई प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। उन्होंने बैरिस्टर बनने की चाहत में सन 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया। उन्होंने लन्दन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया लेकिन उन्हें अपने देश से बेहद लगाव था। अतः उनका लंदन में बिलकुल मन नहीं लगा परन्तु उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए उन्हें वहाँ रहना पड़ा और वकालत की शिक्षा प्राप्त कर पुनः अपने देश सन 1880 मे वे लौट आए।

बचपन से ही उनकी कविता में छन्द और भाषा की अद्भुत प्रतिभा का आभास लोगों को मिलने लगा था। उन्होंने पहली कविता आठ वर्ष की आयु में लिखी थी और सन 1877 में केवल सोलह वर्ष की आयु में उनकी प्रथम लघुकथा प्रकाशित हुई थी। टैगोर ने अपने जीवनकाल में कई उपन्यास, निबंध, लघु कथाएँ, यात्रावृत्तान्त, नाटक और सहस्रों गाने भी लिखे हैं। वे अधिकतम अपनी पद्य कविताओं के लिए जाने जाते हैं। गद्य में लिखी उनकी छोटी कहानियाँ बहुत लोकप्रिय रही हैं।

टैगोर ने इतिहास, भाषाविज्ञान और आध्यात्मिकता से जुड़ी पुस्तकें भी लिखीं। टैगोर के यात्रावृत्तान्त, निबंध, और व्याख्यान कई खंडों में संकलित किए गए थे, जिनमें यूरोप के जटरिर पत्रों और मनुशर धर्म शामिल थे। टैगोर के 150 वें जन्मदिन के अवसर पर उनके कार्यों का एक संकलन वर्तमान में बंगाली कालानुक्रमिक क्रम में प्रकाशित किया गया है। इसमें प्रत्येक कार्य के सभी संस्करण शामिल हैं और लगभग अस्सी संस्करण हैं।

वर्ष 2011 में, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने विश्व-भारती विश्वविद्यालय के साथ अंग्रेजी में उपलब्ध टैगोर के कार्यों की सबसे बड़ी संकलन द एसेंटियल टैगोर को प्रकाशित करने के लिए सहयोग किया। यह फकराल आलम और राधा चक्रवर्ती द्वारा संपादित की गयी थी।

भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकने वाले युगद्रष्टा टैगोर के बहुआयामी सृजन-संसार में ‘गीतांजलि’, ‘पूरबी प्रवाहिनी’, ‘शिशु भोलानाथ’, ‘महुआ’, ‘वनवाणी’, ‘परिशेष’, ‘पुनश्च’, ‘वीथिका शेषलेखा’, ‘चोखेरबाली’, ‘कणिका’, ‘नैवेद्य मायेर खेला’, ‘क्षणिका’, ‘गीताली’, ‘गीतिमाल्य’, ‘कथा ओ कहानी’ और ‘शिशु’ आदि शामिल हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया।

देश और विदेश के सारे साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि का उन्हें ज्ञान था। पिता के ब्रह्म-समाजी होने के कारण वे भी ब्रह्म-समाजी थे पर अपनी रचनाओं व कर्म के द्वारा उन्होंने सनातन धर्म को भी आगे बढ़ाया। टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की।

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