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पंकज प्रसून की कविता हुई सत्तर वर्षों के श्रेष्ठ विज्ञान आलेखों में शामिल

लखनऊ शहर के जाने माने व्यंग्यकार और कवि पंकज प्रसून की कविता “संकरण का संक्रमण” ने एक अनूठा रिकॉर्ड बनाया है। सीएसआईआर के दिल्ली स्थिति राष्ट्रीय विज्ञान संचार नीति अनुसंधान संस्थान( निस्पर) द्वारा प्रकाशित प्रतिष्ठित पत्रिका विज्ञान प्रगति ने अपने प्रकाशन के सत्तर वर्ष पूरे किए एवं सीएसआई आर ने भी अपनी स्थापना के अस्सी वर्ष पूर्ण किए।

इस अवसर पर विज्ञान प्रगति ने विगत सत्तर वर्षों में प्रकाशित श्रेष्ठ अस्सी आलेखों का संकलन प्रकाशित किया है। इस संकलन में महात्मा गांधी, सी वी रमन, डी एन वाडिया, सुंदर लाल बहुगुणा, विष्णु दत्त शर्मा, देवेंद्र मेवाड़ी जैसे महान विचारकों और वैज्ञानिकों के पूर्व प्रकाशित आलेखों के साथ पंकज प्रसून की विज्ञान कविता को भी स्थान मिला है जो कि जून 2012 में प्रकाशित हुई थी।

पंकज प्रसून हास्य व्यंग्य लेखन के साथ ही विज्ञान कविताएं भी पिछले बीस सालों से लिख रहे हैं। उनकी किताब परमाणु की छांव में एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में परमाणु ऊर्जा पर लिखी गई कविता की पहली किताब के रूप में दर्ज है। इस किताब को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का डा के एन भाल पुरस्कार भी मिल चुका है।

पंकज प्रसून बताते हैं कि उनका उद्देश्य कविताओं के माध्यम से बेहद सरलता से वैज्ञानिक चेतना का प्रसार करना है। उन्होंने जेनेटिक इंजीनियरिंग, न्यूक्लियर फिजिक्स, बायो टेक्नोलॉजी जैसे विषयों पर ढेरों कविताएं लिखी हैं। संकरण का संक्रमण कविता में वह लिखते हैं “आज छल कपट ईर्ष्या द्वेषी जीन सक्रिय हैं, न्याय नीति बंधुत्व के जीन सुप्त हो रहे हैं, प्रेम के क्रोमोजोम पर स्थित करुणा मैत्री दया के जीन विलुप्त हो रहे हैं”।

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