उत्तर प्रदेश के पावर सेक्टर पर सवाल: अभियंता बनाम आईएएस प्रबंधन में कौन सफल?
LUCKNOW: उत्तर प्रदेश का पावर सेक्टर एक बार फिर से बहस के केंद्र में है। सवाल यह है कि बिजली कंपनियों की कमान आखिर अभियंताओं के हाथ में होनी चाहिए या फिर आईएएस अफसरों के हाथ में? यह मुद्दा तब और गंभीर हो जाता है जब हम पिछले 66 वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालते हैं।
1959 में गठित राज्य विद्युत परिषद ने करीब 41 साल तक प्रदेश की बिजली व्यवस्था को संभाला। उस दौरान अभियंताओं के हाथ में कमान रही और इस लंबे कार्यकाल में विभाग पर लगभग 10 हजार करोड़ रुपये का घाटा हुआ। लेकिन वर्ष 2000 में इसी घाटे को आधार बनाकर परिषद को भंग कर दिया गया और विभाग की बागडोर आईएएस अधिकारियों को सौंप दी गई।
अब करीब 25 साल बाद हालात यह हैं कि प्रदेश की बिजली कंपनियां करीब 1 लाख करोड़ रुपये के घाटे में हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि जिस विभाग को 41 साल में 10 हजार करोड़ के घाटे के आधार पर तोड़ा गया, वही विभाग 25 साल में 1 लाख करोड़ के घाटे तक कैसे पहुंच गया?
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष एवं राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि यदि सरकार वाकई बिजली कंपनियों को आत्मनिर्भर बनाने के प्रति गंभीर है तो सबसे पहले उसे इस बात की समीक्षा करनी होगी कि अभियंता बनाम आईएएस प्रबंधन में कहां चूक हुई है। वर्मा ने कहा कि बिजली विभाग एक पूर्णतः तकनीकी डिपार्टमेंट है और इसकी कमान तकनीकी विशेषज्ञों यानी अभियंताओं के हाथ में रहनी चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि निजीकरण की दिशा में कदम उठाने से पहले सरकार को गहन समीक्षा करनी चाहिए। क्योंकि उपभोक्ताओं की सेवा और तकनीकी सुधार केवल विशेषज्ञता के दम पर ही संभव हैं, न कि केवल नौकरशाही के सहारे।
प्रदेश में पावर सेक्टर के बढ़ते घाटे और प्रबंधन की खामियों को देखते हुए अब यह बहस और तेज हो गई है कि बिजली विभाग की दिशा और दशा सुधारने के लिए सही नेतृत्व कौन देगा—अभियंता या आईएएस?:
उत्तर प्रदेश पावर सेक्टर पर संकट: अभियंता बनाम आईएएस प्रबंधन की समीक्षा जरूरी
