ओपिनियनस्वास्थ्य

साॅलिड वेस्‍ट बन रहा खतरा, मैनेजमेंट पर देना होगा ध्‍यान 

सीएसआईआर में एक दिवसीय विचार मंथन सत्र - भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-आईआईटीआर)

लखनऊ। यूएनईपी (UNEP) की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में अनुमानित 11.2 बिलियन टन ठोस अपशिष्ट प्रतिवर्ष एकत्र किया जाता है और इन कचरे के कार्बनिक अनुपात का क्षय कुल वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 5 प्रतिशत योगदान देता है।

खराब अपशिष्ट प्रबंधन के परिणामस्वरूप वायु, जल प्रदूषण और मृदा संदूषण होता है। खुले और अस्वच्छ लैंडफिल पीने के पानी के स्रोतों को दूषित कर सकते हैं तथा संक्रमण और बीमारियों का कारण बन सकते हैं। वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट के रूप में एक नई और विकट चुनौती सामने आई है जिसमें नए और जटिल खतरनाक पदार्थ शामिल हैं, जो विकसित और विकासशील दोनों देशों में एक गंभीर चिंता का विषय है।

वर्तमान में लगातार बढ़ती लैंडफिल साइटों से निपटने के लिए भविष्य की रणनीति विकसित करने हेतु सीएसआईआर-आईआईटीआर में एक दिवसीय विचार-मंथन सत्र आयोजित किया गया। मुख्‍य अतिथि व नगर आयुक्‍त लखनऊ इंद्रजीत सिंह ने प्रधान मंत्री के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद के तहत स्थापित वेस्ट टू वेल्थ मिशन की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि ऐसे किसी भी कार्यक्रम की सफलता नागरिकों की सक्रिय भागीदारी से ही संभव हो सकती है और अब समय आ गया है कि हम सभी लैंडफिल साइटों से उत्पन्न खतरों के प्रति जागरूक हों।

कार्यक्रम के सम्मानित अतिथि, डॉ. किशोर श्रीनिवासन, प्रमुख, सीएसआईआर-सूचना उत्पाद अनुसंधान एवं विकास यूनिट (सीएसआईआर-यूआरडीआईपी) ने कहा कि सीएसआईआर की सहयोगी प्रयोगशाला के रूप में, सीएसआईआर-यूआरडीआईपी विकसित बौद्धिक संपदा सुरक्षित और लंबे समय तक बनाए रखने हेतु लैंडफिल साइटों द्वारा उत्पन्न समस्याओं को कम करने के लिए तकनीकी व्यवधानों को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।

डॉ. भास्कर नारायण, निदेशक, सीएसआईआर-आईआईटीआर ने क्रियान्वयन से पूर्व प्रदान किए जा रहे समाधानों के जीवन चक्र का मूल्यांकन करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आज का समाधान कल की समस्या नहीं बनना चाहिए।

प्रोफेसर अवधेश एन झा, प्लायमाउथ विश्वविद्यालय यूनाइटेड किंगडम ने मुख्य सम्बोधन देते हुए लैंडफिल साइटों के जोखिम मूल्यांकन पर भारत-यूके परियोजना के बारे में जानकारी प्रदान की।

इस विचार-विमर्श में उद्योग के विभिन्न हितधारकों (डॉ. बी. चक्रधर, रेसस्टेनेबिलिटी सॉल्यूशंस, हैदराबाद द्वारा प्रतिनिधित्व) शिक्षा जगत (डॉ. वेंकटेश दत्ता, बाबासाहेब भीम राव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ तथा डॉ. भोलू राम यादव, सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान, नागपुर) और नीति निर्माताओं (डॉ. सुंदर रामनाथन, अतिरिक्त निदेशक, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा डॉ. शुक्ला मैत्रा, राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद, नई दिल्ली) की सक्रिय भागीदारी देखी गई।

प्रतिभागियों ने अपशिष्ट निपटान, बिगड़ती वायु गुणवत्ता और जल निकायों के बढ़ते प्रदूषण के मुद्दों से निपटने हेतु तकनीकी क्षमताओं का लाभ उठाने के रोड मैप पर चर्चा की। विभिन्न हितधारकों की भूमिका और उनमें से प्रत्येक द्वारा उठाए जाने वाले कदमों को सूचीबद्ध करते हुए एक दस्तावेज तैयार करने की भी परिकल्पना की गई थी।

इसके पूर्व डॉ. आर पार्थसारथी, प्रधान वैज्ञानिक, सीएसआईआर-आईआईटीआर ने सभा का स्वागत किया व डॉ. एस अंबुमणि, प्रधान वैज्ञानिक, सीएसआईआर-आईआईटीआर ने वैज्ञानिक सभा को कार्यक्रम के बारे में अवगत कराया।

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