सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: अनाथ बच्चों को शिक्षा के अधिकार में शामिल करने का निर्देश
राज्य को बताया गया "पालक पिता", सभी राज्यों को 4 हफ्ते में कदम उठाने का निर्देश

LUCKNOW: भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने एक ऐतिहासिक और संवेदनशील फैसले में सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे अनाथ बच्चों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) के तहत शामिल करें। यह आदेश लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता पौलोमी पाविनी शुक्ला द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई के दौरान पारित किया गया। न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने यह निर्णय सुनाया।
अनाथ बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार
न्यायालय ने आदेश दिया कि सभी राज्य सरकारें सरकारी आदेश (G.O.) जारी कर अनाथ बच्चों को उनके आसपास के स्कूलों में प्रवेश सुनिश्चित करें। इस आदेश का पालन करने के लिए राज्यों को चार सप्ताह का समय दिया गया है। न्यायालय ने अनाथ बच्चों को ‘राज्य का पालक पिता’ (Parens Patriae) मानते हुए कहा कि माता-पिता के अभाव में राज्य की नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह इन बच्चों की शिक्षा और देखभाल सुनिश्चित करे।
संवैधानिक दायित्व और सर्वेक्षण का निर्देश
न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 51 का हवाला देते हुए कहा कि सभी अनाथ बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना राज्य का कर्तव्य है। इसके साथ ही, राज्यों को यह सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया गया कि कितने अनाथ बच्चे स्कूल से बाहर हैं और उनकी शिक्षा की व्यवस्था कैसे की जा सकती है।
याचिकाकर्ता पौलोमी पाविनी शुक्ला ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट का “दयालु, दूरदर्शी और आवश्यक” कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह कदम भारत के लाखों अनाथ बच्चों को समान शिक्षा का अवसर प्रदान करेगा। पौलोमी पाविनी शुक्ला ने अनाथ बच्चों की स्थिति पर गहन शोध किया है और इस विषय पर अपनी पुस्तक “Weakest on Earth – Orphans of India” (प्रकाशक: Bloomsbury) लिखी है। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप कई राज्यों ने अनाथ बच्चों के लिए आरक्षण जैसी योजनाएं लागू की हैं। उन्हें इस कार्य के लिए “Forbes 30 Under 30” सूची में भी शामिल किया गया है।
भारत में 2 करोड़ से ज्यादा अनाथ बच्चे
यूनिसेफ के अनुसार, भारत में 2 करोड़ से अधिक अनाथ बच्चे हैं, लेकिन इनकी कोई आधिकारिक गिनती नहीं की गई है। पौलोमी पाविनी शुक्ला ने अदालत से मांग की कि देश में चल रही जनगणना में अनाथ बच्चों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए। भारत सरकार की ओर से उपस्थित महान्यायवादी (Solicitor General) ने इस मांग पर सकारात्मक रुख अपनाते हुए कहा कि अनाथ बच्चों को जनगणना डेटा में शामिल किया जाना चाहिए और वे इस संबंध में आवश्यक निर्देश प्राप्त करेंगे।