बड़ा मंगल 2025: श्रद्धा, सेवा और सामाजिक समरसता का महापर्व, हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक
Bada Mangal 2025

Bada Mangal : उत्तर भारत, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बड़े मंगल का पर्व अत्यंत श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है। यह पर्व हनुमान जी को समर्पित होता है और विशेषकर ज्येष्ठ माह (मई-जून) के मंगलवारों को मनाया जाता है। इस दिन का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसे धार्मिक आस्था के साथ-साथ सामाजिक सेवा और सामूहिक सहभागिता का प्रतीक भी माना जाता है।
धर्म ग्रंथों की मानें तो ज्येष्ठ महीने के मंगलवार को भगवान श्री राम की मुलाकात हनुमान जी से हुई थी। इसी वजह से ज्येष्ठ महीने के सभी मंगलवार को बड़ा मंगल के रूप में मनाया जाता है। बड़ा मंगल का इतिहास उत्तर प्रदेश के नवाब से जुड़ा हुआ है। चलिए जानते हैं बड़ा मंगल की शुरुआत किस तरह हुई?
बड़े मंगल का इतिहास और मान्यता
बड़े मंगल की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी मानी जाती है। एक मान्यता के अनुसार नवाब आसफ-उद-दौला के समय जब लखनऊ में एक महामारी फैली, तब एक महिला ने हनुमान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना कर संकट से मुक्ति की कामना की। उसकी श्रद्धा से प्रेरित होकर नवाब ने भी मंदिर निर्माण में सहायता की और तब से ही इस दिन विशेष आयोजन होने लगे। यह पर्व हिंदू-मुस्लिम एकता और गंगा-जमुनी तहज़ीब का भी प्रतीक बन गया।
एक मान्यता यह भी है कि 400 वर्ष पहले अवध के नवाब मोहम्मद अली शाह के पुत्र की तबीयत अधिक खराब हो गई थी, जिसके कारण उनकी बेगम अधिक दुखी रहने लगी। काफी इलाज कराने के बाद भी पुत्र के स्वास्थ्य में कोई सुधार देखने को नहीं मिला, तो कुछ लोगों ने नवाब मोहम्मद वाजिद अली शाह की बेगम को अलीगंज के प्राचीन हनुमान मंदिर में ज्येष्ठ माह के मंगलवार को दुआ मांगने के लिए कहा। बेगम ने ठीक ऐसा ही किया और हनुमान जी की कृपा से पुत्र की तबीयत ठीक हो गई।
मोहम्मद अली शाह अपने पुत्र के स्वास्थ्य को देख अधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने हनुमान मंदिर की मरम्मत कराई। मंदिर का मरम्मत का कार्य ज्येष्ठ माह में पूर्ण हुआ। इसके बाद उन्होंने बजरंगबली को गुड़ और धनिया का भोग लगकर लोगों में प्रसाद का वितरण किया। तभी से हर साल बड़ा मंगल का पर्व मनाया जाता है।
पूजा विधि और धार्मिक कार्यक्रम
बड़े मंगल के दिन श्रद्धालु सुबह से ही हनुमान मंदिरों में दर्शन-पूजन के लिए लंबी कतारों में लग जाते हैं। भक्त हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं, मिठाई और बूंदी का भोग लगाते हैं और बजरंगबली से संकटों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं।
हनुमान जी को संकटमोचन कहा जाता है और इस दिन उनकी पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। भक्त विशेष रूप से लाल वस्त्र धारण करते हैं और ‘जय बजरंगबली’ के जयकारों से वातावरण भक्तिमय हो जाता है।
भंडारे और सामाजिक सेवा
बड़े मंगल की सबसे खास बात होती है जगह-जगह लगने वाले भंडारे (नि:शुल्क भोजन वितरण)। यह आयोजन न केवल मंदिरों में बल्कि सड़कों, चौराहों, दफ्तरों, दुकानों और कॉलोनियों तक में किया जाता है। लोग अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार भोजन, शरबत, चने, पूड़ी-सब्जी, खीर और मिठाइयों का वितरण करते हैं।
इस आयोजन में हर वर्ग, हर धर्म, हर जाति के लोग बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं। भंडारे लगाना केवल पुण्य कमाने का नहीं बल्कि समाज में समरसता और आपसी सहयोग का उदाहरण बन गया है। इस दिन गरीबों, यात्रियों और जरूरतमंदों के लिए विशेष ध्यान रखा जाता है।
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
बड़ा मंगल केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह लखनऊ की सांस्कृतिक पहचान भी है। यहां के लोग इस पर्व को हर्षोल्लास और सेवा भावना से मनाते हैं। नवाबों की तहज़ीब और लोक परंपराओं का मेल इस आयोजन को और भी खास बना देता है। यह वह दिन है जब धर्म केवल मंदिरों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि सड़कों पर उतर कर मानव सेवा का रूप ले लेता है।
बड़े मंगल पर हनुमान जी की झांकियां, रथ यात्राएं और लोकगीतों का आयोजन भी होता है, जो लोगों को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है। यह दिन हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति वही है जो सेवा और परोपकार से जुड़ी हो।
निष्कर्ष
बड़ा मंगल न केवल धार्मिक आस्था का पर्व है, बल्कि यह मानवता, सेवा और सामाजिक समरसता का भी उत्सव है। यह हमें यह संदेश देता है कि ईश्वर की सच्ची उपासना तभी संभव है जब हम दूसरों की भलाई के लिए काम करें। हनुमान जी की कृपा से यह दिन हर साल लोगों को नई ऊर्जा और सकारात्मकता से भर देता है।