नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) को असंवैधानिक घोषित कर रद्द किए जाने के बाद, कॉर्पोरेट जगत ने राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए ‘इलेक्टोरल ट्रस्ट’ (Electoral Trusts) का रास्ता अपनाया है। ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024-25 में इलेक्टोरल ट्रस्टों के जरिए राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाला चंदा पिछले साल के मुकाबले तीन गुना बढ़ गया है। कुल 3,811 करोड़ में से अकेले BJP को ही 3,112.50 करोड़ रुपये का चंदा मिला है।
चुनाव आयोग (Election Commission) को सौंपे गए कंट्रीब्यूशन रिपोर्ट्स के अनुसार, 2024-25 में कुल 9 ट्रस्टों ने राजनीतिक दलों को 3,811 करोड़ रुपये का चंदा दिया है। यह राशि 2023-24 में मिले 1,218 करोड़ रुपये से 200% से भी ज्यादा है।
किस पार्टी को कितना चंदा मिला?
इस कुल चंदे में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) का हिस्सा सबसे बड़ा है।
BJP: कुल 3,811 करोड़ रुपये में से 3,112.50 करोड़ रुपये अकेले भाजपा को मिले हैं। यह कुल चंदे का लगभग 82% है।
Congress: मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को 298.77 करोड़ रुपये मिले, जो कुल चंदे का 8% से भी कम है।
अन्य दलों को कुल राशि का लगभग 10% हिस्सा मिला।
प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट (Prudent Electoral Trust) सबसे बड़ा डोनर
रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट भाजपा के लिए सबसे बड़े डोनर के रूप में उभरा है। इस ट्रस्ट ने कुल 2,668.46 करोड़ रुपये का चंदा दिया। इसमें से लगभग 82% यानी 2,180.71 करोड़ रुपये भाजपा को दिए गए।
प्रूडेंट ट्रस्ट ने कांग्रेस, टीएमसी (TMC), आम आदमी पार्टी (AAP), टीडीपी (TDP) और अन्य दलों को भी चंदा दिया, लेकिन बड़ा हिस्सा भाजपा के खाते में गया।
प्रूडेंट ट्रस्ट को फंड देने वाली प्रमुख कंपनियों में जिंदल स्टील एंड पावर (Jindal Steel and Power), मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (Megha Engineering), भारती एयरटेल (Bharti Airtel), अरबिंदो फार्मा और टोरेंट फार्मास्युटिकल्स शामिल हैं।
टाटा समूह और महिंद्रा का योगदान
प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट (Progressive Electoral Trust):
इस ट्रस्ट ने वित्त वर्ष के दौरान विभिन्न कंपनियों से 917 करोड़ रुपये का कोष जमा किया और इसमें से 914.97 करोड़ रुपये दान किए। इसका लगभग 80.82% हिस्सा (757.62 करोड़ रुपये) भाजपा को गया।
इस ट्रस्ट में मुख्य योगदानकर्ता टाटा समूह की कंपनियां थीं, जिनमें टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), टाटा स्टील और टाटा मोटर्स शामिल हैं।
न्यू डेमोक्रेटिक इलेक्टोरल ट्रस्ट (New Democratic Electoral Trust)
इस ट्रस्ट ने कुल 160 करोड़ रुपये का चंदा दिया।
इसमें से 150 करोड़ रुपये भाजपा को दिए गए।
इस ट्रस्ट के मुख्य डोनर्स में महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड (Mahindra & Mahindra), टेक महिंद्रा और महिंद्रा फाइनेंशियल सर्विसेज शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और बदलता ट्रेंड
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2024 की शुरुआत में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था। इसके बाद से कंपनियां अब चेक, डिमांड ड्राफ्ट (DD) या बैंक ट्रांसफर के जरिए ही चंदा दे सकती हैं। नियमों के मुताबिक, पार्टियों को अपनी कंट्रीब्यूशन रिपोर्ट और ऑडिट रिपोर्ट में इन दानदाताओं की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होती है।
आंकड़े बताते हैं कि 2023-24 में, जब इलेक्टोरल बॉन्ड चलन में थे, तब भी भाजपा को 3,967.14 करोड़ रुपये का स्वैच्छिक योगदान मिला था, जिसमें से 43% (1,685.62 करोड़ रुपये) इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए आया था। बॉन्ड रद्द होने के बाद अब फंड का प्रवाह ट्रस्टों की ओर मुड़ गया है.
जनप्रगति इलेक्टोरल ट्रस्ट (Janpragati Electoral Trust):
इसे कुल 1.02 करोड़ रुपये मिले, जिसमें से 1 करोड़ रुपये शिवसेना (UBT) को दिए गए। इसमें एकमात्र डोनर मुंबई स्थित KEC इंटरनेशनल लिमिटेड थी।
हार्मनी इलेक्टोरल ट्रस्ट (Harmony Electoral Trust):
इसने 35.65 करोड़ रुपये प्राप्त किए और 30.15 करोड़ रुपये भाजपा को दिए। इसमें पुणे स्थित भारत फोर्ज लिमिटेड (22 करोड़ रुपये) का बड़ा योगदान था।
जनकल्याण इलेक्टोरल ट्रस्ट (Jankalyan Electoral Trust):
इसका पूरा 19 लाख रुपये का चंदा फॉरेवर बिजनेस सॉल्यूशंस से आया, जिसे भाजपा और कांग्रेस के बीच आधा-आधा (9.5 लाख रुपये) बांटा गया।
