Buddha Purnima करुणा, शांति और बोध का पर्व है ‘बुद्ध पूर्णिमा’

भारतवर्ष अनेक धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपराओं का उद्गम स्थल रहा है। इन्हीं परंपराओं में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है बुद्ध पूर्णिमा (buddha purnima), जिसे वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध जयन्ती या बोधि दिवस भी कहा जाता है। भगवान गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बोधि) और महापरिनिर्वाण (मृत्यु) के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला पवित्र पर्व है।
यह दिन बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए प्रेरणादायक है, क्योंकि भगवान बुद्ध ने करुणा, अहिंसा और शांति का मार्ग दिखाया। इस दिन भगवान गौतम बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण – तीनों महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुई थीं। इसीलिए यह दिन त्रिविध पुण्य तिथि कहलाता है।
भगवान बुद्ध (Lord Buddha) का जीवन परिचय
गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) का जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में एक क्षत्रिय राजा शुद्धोधन और रानी महामाया के यहां हुआ था। बचपन में उनका नाम सिद्धार्थ था। वे शाक्य वंश के राजकुमार थे। वैभव, ऐश्वर्य और सुख-सुविधा में पले-बढ़े सिद्धार्थ ने जब जीवन के चार सत्य – जन्म, रोग, वृद्धावस्था और मृत्यु – को देखा, तो वे भीतर से हिल गए।
उन्होंने 29 वर्ष की आयु में घर-परिवार, राज्य और सुख-भोग का त्यागकर सत्य की खोज में सन्यास ले लिया और तपस्या की। वर्षों की साधना के बाद उन्होंने बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया और बुद्ध कहलाए। इसके बाद वे जीवनभर उपदेश देते रहे और करुणा व अहिंसा का संदेश फैलाते रहे।
छः वर्षों की कठोर तपस्या के बाद सिद्धार्थ ने बोधगया (बिहार) (Bodh Gaya, Bihar) में पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए आत्मज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद वे बुद्ध (Buddha) कहलाए, जिसका अर्थ है – “जाग्रत व्यक्ति”। उन्होंने आजीवन मानवता को दुखों से मुक्ति का मार्ग बताया। 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) में उन्होंने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया।
बुद्ध पूर्णिमा का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
बुद्ध पूर्णिमा (buddha purnima) वैशाख मास की पूर्णिमा तिथि को आती है और इसे त्रिवेणी पर्व भी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन तीन ऐतिहासिक घटनाएं हुई थीं:
- जन्म – लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में राजा शुद्धोधन और रानी महामाया के यहाँ सिद्धार्थ गौतम का जन्म हुआ।
- ज्ञान प्राप्ति – बोधगया में पीपल वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और वे गौतम बुद्ध बने।
- महापरिनिर्वाण – इसी दिन कुशीनगर में उन्होंने शरीर त्याग किया।
इन तीनों घटनाओं के कारण यह पर्व बौद्ध अनुयायियों के लिए अत्यंत पूजनीय है। यह दिन केवल बौद्धों के लिए ही नहीं, बल्कि सभी धर्मों और जातियों के लिए एक सार्वभौमिक संदेश लेकर आता है – दया, अहिंसा और आत्मबोध का।
बुद्ध पूर्णिमा कैसे मनाई जाती है?
बुद्ध पूर्णिमा को भारत सहित श्रीलंका, नेपाल, थाईलैंड, म्यांमार, तिब्बत, जापान और कई अन्य देशों में बड़े श्रद्धा-भाव से मनाया जाता है। इस दिन:
- बौद्ध अनुयायी विशेष पूजा और प्रार्थनाएं करते हैं।
- बौद्ध विहारों (मठों) में बुद्ध की मूर्ति को स्नान कराकर वस्त्र पहनाए जाते हैं।
- दीपक जलाए जाते हैं और उपदेशों का पाठ किया जाता है।
- लोग दान करते हैं, विशेषकर गरीबों और ज़रूरतमंदों को भोजन व वस्त्र दिए जाते हैं।
- कुछ स्थानों पर झांकियां और शोभायात्राएं भी निकलती हैं।
भगवान बुद्ध के उपदेश
भगवान बुद्ध ने “मध्यम मार्ग” (Middle Path) का उपदेश दिया, जिसमें अति-विलास और अति-त्याग दोनों से बचने की बात कही गई। उनके प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
चार आर्य सत्य (Four Noble Truths):
- जीवन दुःखमय है।
- दुःख का कारण तृष्णा है।
- तृष्णा का अंत संभव है।
- दुःख से मुक्ति का मार्ग अष्टांगिक मार्ग है।
अष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path):
सम्यक दृष्टि, संकल्प, वाणी, कर्म, आजीविका, प्रयास, स्मृति और समाधि। बुद्ध ने किसी भी प्रकार की अंधश्रद्धा, आडंबर और हिंसा का विरोध किया। उन्होंने करुणा, अहिंसा और आत्मसंयम को जीवन का मूल आधार बताया।