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शिक्षा व पर्यटन का प्रमुख केंद्र है नालंदा

Nalanda University

(अनन्या-अर्नव की ग्राउंड रिपोर्ट)
बिहार राज्य का नालंदा जिला, जिसकी स्थापना 5वीं शताब्दी ईस्वी में हुई, प्राचीन शिक्षा केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ विश्व के सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहर स्थित हैं, जो बोधगया से 62 किलोमीटर और पटना के दक्षिण में 90 किलोमीटर की दूरी पर है। यद्यपि भगवान बुद्ध ने अपने जीवनकाल में कई बार नालंदा का दौरा किया था, फिर भी यह बौद्ध शिक्षा का प्रसिद्ध केंद्र 5वीं से 12वीं शताब्दी के दौरान अधिक ख्यातिप्राप्त हुआ।

7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग (Hieunsaang) ने यहाँ निवास किया था और यहाँ की उत्कृष्ट शिक्षा व्यवस्था तथा तपस्वी मठवासी जीवन का विस्तृत वर्णन किया था। उन्होंने इस अद्वितीय प्राचीन विश्वविद्यालय के वातावरण और वास्तुकला का भी सजीव चित्रण किया है। ह्वेनसांग (629-645 ई.) के अनुसार नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में आठ बड़े भवन, तीन सौ निवास स्थान, अनेक कक्ष, उद्यान, जलाशय, वटवृक्ष, पाठशालाएँ, व्यायामशालाएँ, और चिकित्सालय प्रमुख थे। ह्वेनसांग यहाँ जीवन भर अध्ययन एवं अध्यापन करते रहे।

नालंदा विश्वविद्यालय का गौरवपूर्ण विकास गुप्त शासकों के शासन काल में हुआ। गुप्त राजाओं ने इन विहारों का संरक्षण किया, जो पुराने कुषाण वास्तुकला शैली में एक आँगन के चारों ओर कक्षों की पंक्ति में निर्मित थे। सम्राट अशोक और हर्षवर्धन इसके कुछ प्रमुख संरक्षक थे, जिन्होंने यहाँ मंदिरों, विहारों और मठों का निर्माण कराया।

विश्व के इस पहले आवासीय अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में लगभग लगभग 10,000 विद्यार्थी एवं 2,000 शिक्षक विश्व के विभिन्न हिस्सों से आकर अध्ययन और निवास करते थे। बौद्ध धर्म के जीवन्त केंद्र के रूप में विख्यात इस में व्याकरण, तर्कशास्त्र, छन्द, ज्योतिष शास्त्र, गणित शास्त्र, चिकित्सा शास्त्र, आयुर्वेद, शल्य चिकित्सा आदि विषयों का गहन अध्ययन होता था।

नालंदा का नाम ‘नालम’ (कमल) शब्द से उत्पन्न हुआ है। यहाँ का प्रमुख विहार भी कमलाकार था। नालंदा को मुसलमान आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिया गया। 1199 ई. में बख्तियार खिलजी द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय को आग लगा दी गई और यहाँ के भिक्षुओं का वध किया गया।

वर्तमान नालंदा विश्वविद्यालय स्थल पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा 1915 ई. से 1934 ई. तक खुदाई की गई। यहाँ पर अनेक विहारों एवं मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। प्रमुख विहारों में मंदिरों के अवशेष और इनमें स्थित बुद्ध की प्रतिमाएँ प्रमुख हैं। विहारों के प्रवेश द्वार एवं आलों से अनेक अभिलेख एवं मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।

यहाँ पाए गए अभिलेखों से यह स्पष्ट होता है कि यहाँ बौद्ध धर्म के साथ-साथ हिन्दू धर्म का भी प्रचार था। मंदिर संख्या 3 के द्वार स्तम्भ पर अंकित चित्रकला शैली में ब्राह्मण धर्म की झलक स्पष्ट देखी जा सकती है।

नालंदा के विभिन्न विहारों एवं मंदिरों के निर्माण की शैली में एक विशिष्ट स्थापत्य कला का दर्शन होता है। मंदिर निर्माण की शैली में पत्थर एवं ईंट का समान रूप से प्रयोग हुआ है।

यहाँ से प्राप्त मूर्तियों में बुद्ध, अवलोकितेश्वर, मंजुश्री, वज्रपाणि, मइत्रेय, तारा, मरिची, जंबला, आदि देवी देवताओं की प्रतिमाएँ उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त विष्णु, गणेश, शिव, सूर्य, महिषासुरमर्दिनी, दुर्गा आदि हिन्दू देवी देवताओं की प्रतिमाएँ भी प्राप्त हुई हैं।

नालंदा की ईंटों पर अंकित विविध भित्ति चित्र, विविध स्थापत्य शिल्प एवं खुदाई में प्राप्त धातु मूर्तियाँ नालंदा की कला के उत्कर्ष का प्रमाण देती हैं।

नालंदा का ऐतिहासिक स्थल एवं संग्रहालय एक महत्वपूर्ण पर्यटन केंद्र है। भारतीय एवं विदेशी पर्यटकों द्वारा प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में यहाँ भ्रमण किया जाता है।

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नजदीक ही बिहार शरीफ स्थित है, जहाँ मलिक इब्राहीम बाया की दरगाह पर प्रतिवर्ष उर्स मनाया जाता है।

बरगांव, जो यहाँ से 2 किलोमीटर दूर है, सूर्य मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ विशेष रूप से छठ पूजा का आयोजन होता है।

यहाँ देखने योग्य स्थानों में नालंदा संग्रहालय और नव नालंदा महाविहार के साथ-साथ प्राचीन खंडहर भी शामिल हैं।

नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष

खुदाई का कुल क्षेत्रफल लगभग 14 हेक्टेयर है। सभी इमारतें लाल ईंटों से बनी हैं और बाग-बगीचे बहुत सुंदर हैं। इमारतें एक केंद्रीय मार्ग द्वारा विभाजित हैं, जो दक्षिण से उत्तर की ओर जाता है। इस केंद्रीय गली के पूर्व में मठ या “विहार” और पश्चिम में मंदिर या “चैत्य” स्थित हैं। विहार-1 शायद सबसे रोचक है, जिसमें दो मंजिलों पर कमरे बने हैं जो एक केंद्रीय प्रांगण के चारों ओर स्थित हैं, जहाँ से सीढ़ियाँ एक मंच तक जाती हैं जहाँ से संभवतः आचार्य अपने विद्यार्थियों को संबोधित करते थे। एक छोटी सी चैपल में भगवान बुद्ध की एक आधी टूटी हुई प्रतिमा अभी भी विद्यमान है।

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मंदिर संख्या 3 का विशाल पिरामिड आकार अत्यंत प्रभावशाली है और इसकी चोटी से पूरे क्षेत्र का शानदार दृश्य दिखाई देता है। यह मंदिर छोटे-छोटे स्तूपों से घिरा हुआ है, जिनमें से कई भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में छोटी-बड़ी प्रतिमाओं से अलंकृत हैं।

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नालंदा पुरातात्विक संग्रहालय

विश्वविद्यालय के अवशेषों के प्रवेश द्वार के सामने एक छोटा लेकिन सुंदर संग्रहालय स्थित है, जिसमें बौद्ध और हिंदू कांस्य मूर्तियों का संग्रह है तथा क्षेत्र में प्राप्त भगवान बुद्ध की कई अक्षत प्रतिमाएँ रखी गई हैं। संग्रहालय के पीछे एक छायादार स्थान में पहली शताब्दी के दो विशाल टेराकोटा घड़े भी सुरक्षित रूप से रखे गए हैं। संग्रह में ताम्रपत्र, पत्थर पर लेख, सिक्के, मिट्टी के बर्तन और 12वीं शताब्दी ईस्वी में प्राप्त जले हुए चावल के नमूने भी शामिल हैं।

नव नालंदा महाविहार

नव नालंदा महाविहार पाली साहित्य और बौद्ध धर्म के अध्ययन एवं अनुसंधान के लिए समर्पित है। यह एक नया संस्थान है, जहाँ विदेशी देशों के छात्र भी अध्ययन करते हैं।

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Nava Nalanda Mahavihara

सामान्य जानकारी

ऊंचाई: 67 मीटर

तापमान (अधिकतम/न्यूनतम) डिग्री सेल्सियस: ग्रीष्मकालीन 37.8°/17.8°; शीतकालीन 27.8°/10.6°

वर्षा: 120 सेमी (जून से सितंबर के बीच)

श्रेष्ठ मौसम: अक्टूबर से मार्च

पहनावा: गर्मी में सूती वस्त्र, सर्दी में भारी ऊनी वस्त्र

कैसे पहुँचें

वायु मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा पटना (89 किलोमीटर) में स्थित है। एयर इंडिया तथा अन्य विमान सेवाएँ पटना को कोलकाता, रांची, मुंबई, दिल्ली और लखनऊ से जोड़ती हैं।

रेल मार्ग

यद्यपि नालंदा के सबसे निकट का रेलवे स्टेशन राजगीर (12 किलोमीटर) है, परंतु सबसे सुविधाजनक रेलवे स्टेशन गया (95 किलोमीटर) है।

सड़क मार्ग

नालंदा सड़क मार्ग द्वारा राजगीर (15 किमी), बोधगया (85 किमी), गया (95 किमी), पटना (90 किमी), पावापुरी (26 किमी), बिहार शरीफ (13 किमी) आदि से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

स्थानीय परिवहन

टैक्सी और बसें उपलब्ध हैं।

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