जब 37 दिनों तक 52 क्रांतिकारियों के शव बावनी इमली के पेड़ पर लटकते रहे
1857: जोधा सिंह अटैया की बलिदान गाथा – रोंगटे खड़े कर देगी

स्वतंत्रता संग्राम की यह गाथा आपके रोंगटे खड़े कर देगी। इसे पढ़ने में बस दो मिनट का ही समय लगेगा।।।
यह घटना है 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की, जब 37 दिनों तक 52 क्रांतिकारियों के शव इमली (बावनी इमली/ (Bawani Imli) के पेड़ पर लटकते रहे थे। मात्र 20 वर्ष की आयु में अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाने वाले जोधा सिंह ‘अटैया’ का बलिदान दिवस (28 अप्रैल 1858) को होता है। मगर बहुतेरों को इस वीर के बारे में कुछ नहीं पता।
स्वतंत्रता सेनानियों ने लगभग 200 वर्ष तक ब्रिटिश हुकूमत से युद्ध करके स्वतंत्रता पाने का स्वप्न साकार किया। इन्हीं महान क्रांतिकारियों में से एक थे उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के अटैया रसूलपुर गाँव के रहने वाले अमर बलिदानी ठाकुर जोधा सिंह ‘अटैया’। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अपने 51 साथियों के साथ मिलकर बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। युद्ध में अंग्रेजों को मात देने के लिए उन्होंने गुरिल्ला युद्ध को अपना हथियार बनाया था।
उस जंग में जोधा सिंह और उनके जांबाज़ साथियों ने मिलकर अंग्रेज अफसर कर्नल पावेल की हत्या कर दी थी। उन्होंने 7 दिसम्बर 1857 को रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला कर अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी। इसके दो ही दिन बाद उन्होंने यानी 9 दिसंबर, 1857 को जहानाबाद (तत्कालीन तहसील) के तहसीलदार को बंदी बनाकर सरकारी खजाना लूट लिया था।
एक किशोर क्रांतिकारी की रणनीति और युद्धनीति के हाथों बार-बार मात खाने से अंग्रेजी अफसरों के माथे पर पसीना तर-बतर हो गया। जोधा सिंह और उनके साथियों के लिये धरपकड़ बढ़ा दी गयी। मगर जोधा सिंह किसी के हाथ नहीं आ रहे थे। फिर वही हुआ जो हमेशा से होता आया है। एक गद्दार ने अंग्रेजों को जोधा सिंह की सारी सूचना दे दी। चंद रुपयों के लिये उसने मातृभूमि से दगा कर दिया।
कड़ी मशक्कत के बाद 28 अप्रैल, 1858 को ब्रिटिश शासक कर्नल क्रस्टाइज की घुड़सवार सेना ने जोधा सिंह समेत उनके 51 जांबाज़ क्रांतिकारियों को खजुहा वापस लौटते समय बंदी बना लिया। साथ ही, उसी दिन इन सभी को फतेहपुर जिला स्थित खजुहा में एक इमली के पेड़ पर फांसी से लटका दिया गया। तभी से उक्त पेड़ ‘बावनी इमली’ के नाम से प्रसिद्ध है। स्थानीय लोगों के पुरखों ने उन्हें बताया है कि जब इन सभी को फांसी दी गयी थी, उस समय से ही इस पेड़ का विकास थम सा गया है।
अंग्रेजों ने उस समय लोगों में डर पैदा करने के लिए सभी शवों को पेड़ से उतारने से मना कर दिया था। चेतावनी दी गयी थी कि अगर ऐसा करने की किसी ने हिम्मत की तो उसका भी यही हश्र होगा। इस वजह से इन सभी क्रांतिकारियों के शव 37 दिनों तक पेड़ से ही लटके रहे। इस दौरान शवों के केवल कंकाल ही बचे। बावनी इमली के पास दर्ज ऐतिहासिक दस्तावेज की मानें तो अमर शहीद ठा। जोधा सिंह के साथी ठाकुर महाराज सिंह ने अपने 900 क्रांतिकारी साथियों के साथ 3-4 जून 1858 की रात सभी कंकाल को पेड़ से उतारकर गंगा नदी किनारे स्थित शिवराजपुर घाट पर अंतिम संस्कार किया था।
ठाकुर जोधा सिंह राजपूत जाति से थे। वह फतेहपुर जिले के अटैया रसूलपुर गांव के रहने वाले थे। ठा. जोधा सिंह अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। युद्ध मे अंग्रेजों को मात देने के लिए उन्होंने गुरिल्ला युद्ध को अपना हथियार बनाया था। इस जंग के दौरान जोधा सिंह और उनके जांबाज़ साथियों ने मिलकर अंग्रेज अफसर कर्नल पावेल की हत्या कर दी थी। वहीं, 7 दिसंबर को रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला भी किया था। इसके दो ही दिन बाद यानी 9 दिसंबर, 1857 को जहानाबाद (तत्कालीन तहसील) के तहसीलदार को बंदी बनाकर सरकारी खजाना लूट लिया था