Mothers Day: स्त्री की संपूर्णता का एक ही नाम ‘मां’-Dr. Dhwani Singh
Mothers Day Special माँ बनना: औरत के जीवन की सबसे सुंदर उपलब्धि – Dr. Dhwani Singh

Dr. Dhwani singh
11 मई मदर्स डे (Mothers Day) को लेकर सभी के अपने ये अपने विचार होते हैं, मां की महानता को लेकर लोग कई शेरो शायरी तक लिख डालते है लेकिन मां को समझने के लिए मां बनना हर स्त्री के लिए जरुरी है। जब तक स्त्री मां नहीं बनती तब तक उसे इस मां शब्द से परिचित होने का अवसर नहीं मिलता। मां को समझने के लिए मां बनना जरुरी है।
मां हमारे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण और प्यारी व्यक्ति होती हैं। उनका प्यार, बलिदान और देखभाल हमें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। ऐसे में मदर्स डे एक ऐसा दिन है जब हम अपनी मां के प्रति अपना आभार और प्यार व्यक्त कर सकते हैं। मां एक शब्द नहीं एक जीवन है,जो जीवन को मीठा करती मधुबन है,मां जीवन के अभावों को ढकती एक प्रयास है,मां हर हाल में जीवन जीने की आस है, मां सारे दुखों कों हर लेगी ऐसा विश्वास है, मां जीवंत, जागृत, साक्षात भगवान् है,सारी गलतियों को झट से क्षमा करती इतनी महान है,हे ईश्वर सबको मां का प्यार मिलें,कोई न हो ऐसा जिसको न इसका दुलार मिलें,वहां कभी दुःख नहीं आता जिसे मां का आशीर्वाद मिले।
मां बनना इस दुनिया का सबसे बड़ा सुख है और इस के बाद हर महिला की जिंदगी बहुत बदल जाती है। अब पहले की तरह उनके पास खुद पर ध्यान देने के लिए भरपूर समय नहीं होता है और अब उनकी पहली प्रायोरिटी भी बच्चा होता है। मां के बाद एक औरत की जिंदगी में कई बड़े बदलाव आते हैं और ऐसी कई चीजें होती हैं जो महिलाओं को अपने बारे में ही मां बनने के बाद पता चलती हैं। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको कुछ ऐसी चीजों के बारे में बता रहे हैं, जो मां बनने के बाद एक औरत की जिंदगी में बदल जाती हैं।जब तक आप मां नहीं बनतीं, तब तक आपको अपने अंदर छिपी ताकत और हिम्मत का भी पता नहीं चलता है।
प्रेग्नेंसी के नौ महीने और डिलीवरी का दर्द सहने के बाद आपको ये एहसास होता है कि आपमें कितनी शक्ति है। वहीं प्रेग्नेंसी में आपको बहुत कुछ सहना पड़ता है और प्रसव पीड़ा का दर्द तो जैसे मन को तोड़ देता है लेकिन शिशु को गोद में लेने के बाद ये सारा दर्द आपका छूमंतर हो जाता है और आपको लगता है कि आपको अपनी सारी मेहनत का फल मिल गया है। बच्चे के आने के बाद आपका पूरा टाइम टेबल बिगड़ जाता है। जहां पहले आप अलार्म की आवाज से उठती थीं, वहीं अब आपको अपने बच्चे के रोने की आवाज आने पर उठना होगा। वहीं अब सोने, जागने, खाने का शेड्यूल भी बच्चे के रूटीन से होगा।
मां बनने के बाद ये एक बहुत बड़ा बदलाव जिंदगी में आता है। मां बनने से पहले शायद ही कोई ऐसा इंसान हो, जिसे आप खुद से ज्यादा प्यार करती हों या जिसकी तकलीफ आपके दिल को चीर कर रख देती हो। बच्चे को छोटी-सी भी तकलीफ होती है, तो मां को उससे ज्यादा दर्द महसूस होता है। अब आपके लिए वीकएंड के नाम पर कुछ नहीं बचेगा।जब आप खुद पेरेंट बनते हैं और अपने बच्चे की परवरिश के लिए दिन-रात एक कर देते हैं, तब आपको एहसास होता है कि आपके पैरेंट्स ने आपके लिए कितना कुछ किया है। मां बनने के बाद आप खुद अपनी मां और पिता का पहले से ज्यादा सम्मान करने लगती हैं। ये एक बड़ा बदलाव होता है जो आपकी जिंदगी ही नहीं बल्कि रिश्तों के भी मायने बदल देता है।

पहले जो बातें आपको एंटरटेन करती थीं और आपको पसंद आती थीं, अब वहीं बातें आपको बोर लगती हैं। अब आपकी दुनिया बस आपके बच्चे के ईर्द-गिर्द घूमती हैं। अब आप अपनी सहेलियों से भी अपने बच्चे के बारे में बात करती हैं और उनसे सलाह-मशविरा करती हैं। इसके साथ ही आपको अपने शरीर के प्रति सम्मान भी बढ़ जाता है। हमारा शरीर ही होता है जो बहुत कुछ सह कर हमें बच्चे का सुख देता है।
यही वजह है कि स्त्री कितनी भी बुलंदियों तक पहुंच जाए मगर बिना मां बने सबकुछ अधूरा लगता है उसे औरत की महत्त्वाकांक्षा ने जब उड़ान भरी तो उस ने अपने हर सपने को सच करने की काबिलीयत दुनिया को दिखा कर यह साबित कर दिया कि वह भी योग्यता में पुरुषों से कम नहीं है। कैरियर के प्रति वह इतनी सचेत हो गई कि सफलता की सीढि़यां चढ़ते- चढ़ते उस मुकाम पर पहुंच गई जहां परिवार को समय दे पाना उस के लिए कठिन होने लगा। आधुनिक जीवनशैली की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए चूंकि औरत का काम करना अनिवार्य हो गया इसलिए पुरुष भी उसे सहयोग देने के लिए आगे आया और ‘डबल इनकम, नो किड्स’ की धारणा जोर पकड़ने लगी।
अपने निजत्व की चाह व भौतिक सुखसाधनों में जुटी औरत चाहे कितनी ही आगे क्यों न निकल जाए पर कभीकभी उसे यह एहसास अवश्य होने लगता है कि मातृत्व सुख से बढ़ कर न तो कोई सुखद अनुभूति होती है, न ही सफलता. यही वजह है कि आरंभ में कैरियर के कारण मां बनने की खुशी से वंचित रहने वाली औरतें भी आज 30-35 वर्ष की आयु पार कर के भी गर्भधारण करने को तैयार हो जाती हैं। देर से ही सही, किंतु ज्यादा उम्र हो जाने के बावजूद वे प्रेगनेंसी में होने वाली दिक्कतों का सहर्ष सामना करने को तैयार हो जाती हैं। उस समय न तो कैरियर की बुलंदियां उन्हें रोक पाती हैं, न ही कोई और चाह।
प्रकृति से मिला मां बनने का उपहार औरत के लिए सब से बेहतरीन उपहार है। वह इस के हर पल का न सिर्फ आनंद उठाती है वरन उसे इस खूबसूरत एहसास को अनुभूत करने का गर्व भी होता है. मातृत्व का प्रत्येक पहलू औरत को पूर्णता व आश्चर्यजनक अनुभव से भर देता है। मां बनते ही अचानक वह उस शिशु के साथ सोने जागने, बात करने व सांस लेने लगती है। मां बनना एक ऐसा भावनात्मक अनुभव है जिसे किसी भी औरत के लिए शब्दों में व्यक्त करना असंभव होता है। यह मां ही तो होती है जिस का अपने बच्चे के साथ जुड़ाव न सिर्फ शारीरिक व मानसिक होता है वरन अलौकिक भी होता है। बच्चे के जन्म के साथ उसे जो खुशी मिलती है, वह उसे बड़ी से बड़ी कामयाबी हासिल कर के भी नहीं मिल पाती है। औरत की जिंदगी बच्चे के जन्म के साथ ही पूरी तरह बदल जाती है।
जब अपने ही शरीर का एक अंश गोद में आ कर अपने नन्हे – नन्हे हाथों से अपनी मां को छूता है और जब मां उस फूल से कोमल जादुई करिश्मे को अपने सीने से लगाती है तो उसे महसूस होता है कि उसे जिंदगी की वह हर खुशी मिल गई है जिस की उस ने कभी कल्पना भी न की थी। शिशु का जन्म जीवन में होने वाली ऐसी जादुई वास्तविकता है, जो औरत की जिंदगी की प्राथमिकताएं, सोच व सपनों को ही बदल देती है। एक शिशु को जन्म देने के बाद औरत की दुनिया उस पर ही आ कर सिमट जाती है. वजह है उन दोनों के बीच का अटूट रिश्ता।मां बनना अगर एक नैसर्गिक प्रक्रिया है तो एक सुखद एहसास भी है.
यह कुदरत की एक बहुत ही अनोखी प्रक्रिया है, जिस में सहयोग तो स्त्रीपुरुष दोनों का होता है, पर प्रसवपीड़ा और जन्म देने का सुख सिर्फ औरत के ही हिस्से में आता है. जब एक औरत अपने रक्तमांस से सींच कर, अपनी कोख में एक अंश को 9 महीने रख कर उसे जन्म देती है तो उस के लिए यह सब से गर्व की बात होती है, उस की सब से बड़ी उपलब्धि होती है।शिशु की किलकारी, मुसकराहट व खिले हुए मासूम चेहरे को देख कर वह प्रसवपीड़ा को किसी बीती रात के सपने की तरह भूल जाती है। उसे सीने से लगा कर जब वह दूध पिलाती है तो गर्भधारण करने से ले कर जन्म के बीच तक झेली गई तमाम शारीरिक व मानसिक पीड़ाएं कहीं लुप्त हो जाती हैं। कहा जाता है कि शिशु जन्म के समय एक तरह से औरत का दोबारा जन्म ही होता है, लेकिन शिशु के गोद में आते ही वह अपनी तकलीफ भूल कर उस के पालनपोषण में जीजान से जुट जाती है।
औरत चाहे शिक्षित हो या अशिक्षित, गरीब हो या अमीर, किसी बहुत ही उच्च पद पर आसीन हो या आम गृहिणी, मां बनने के सुख से वंचित नहीं रहना चाहती है और इसीलिए परिस्थिति चाहे जैसी हो, वह इस अनुभूति को महसूस करना ही चाहती है। यही एकमात्र ऐसी भावना है, जो एक तरफ तो औरत को बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत देती है तो दूसरी ओर इस के लिए वह अपनी बड़ी से बड़ी खुशी या चाह को भी दांव पर लगा सकती है। ऐसा न होता तो कैरियर के उच्च मुकाम पर पहुंची औरतें मां बनने के बाद सब कुछ छोड़ सिर्फ मां ही की भूमिका नहीं निभा रही होतीं।
औरत के लिए अपने बच्चे से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कुछ नहीं होता। इसलिए वह अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को भी मां बनते ही सीमित कर देती है, क्योंकि उस की नजरों में मां बनना ही सर्वोत्तम उपलब्धि है। आज की औरत, जिस की महत्त्वाकांक्षाएं अनंत हैं, जो हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुकी है, जो कामयाबी के शिखर छू रही है, जिस की उपलब्धियां जाने कितने रूपों में देखने को मिलती हैं, वह मां बनते ही जिस ललक से भर जाती है, जिस तरह की संतुष्टि उसे होती है, वह बाकी चीजों को गौण बना देती है।
मां बनने की उपलब्धि के आगे बाकी सारी चीजें उस के सामने फीकी पड़ जाती हैं। उसे एहसास होता है कि जो खुशी बच्चे की एक मुसकराहट देखने से मिल सकती है, वह किसी भी तरह के भौतिक सुख से नहीं प्राप्त हो सकती है। वह तनावमुक्त हो उस की छोटीछोटी हरकतों में खो जाती है। शिशु की आंखों में झांकते हुए उस के अंदर ऊर्जा का संचार होता है और संपूर्ण स्त्री होने की गरिमा उसे आंतरिक शक्ति प्रदान करती है। फिर रातों को जागना बोझ नहीं लगता. अपने लिए वक्त न निकाल पाना चुभता नहीं।ऐंजेलिना जोली हो या ज्यूड ला या फिर अभिनेत्री गेनेथ पेलट्रा, जिन्हें आस्कर पाने पर भी उतनी खुशी नहीं हुई जितनी कि अपनी बेटी के पैदा होने पर। इस समय उन की प्राथमिकता उन का कैरियर नहीं, बल्कि उन की बेटी है, जिस के कारण वे अभी फिल्मों में काम नहीं कर रही हैं। ऐंजेलिना जोली का अपने बच्चे होने पर अनाथ बच्चों को गोद लेना भी किसी से छिपा नहीं है।
6 बच्चों के साथ खुश ऐंजेलिना का मानना है कि अब उन के अंदर सफल होने या नाम कमाने की वैसी इच्छा नहीं है जैसी कि पहले हुआ करती थी। उन्हें मां बनने के सुख ने न सिर्फ एक बेहतर इनसान बनने का मौका दिया है, बल्कि एक ऐसा स्वार्थी इनसान भी बना दिया है, जो सिर्फ अपने बच्चों के बारे में सोचना चाहता है। अभिनेत्री सुष्मिता सेन पिछले दिनों दूसरी बेटी को गोद लेने के कारण चर्चा में आई थीं। उन का कहना था कि वे एक और बेटी को गोद ले कर अपने परिवार को पूर्ण करना चाहती हैं।
जया बच्चन ने अपने बच्चों की खातिर उस समय अपने कैरियर को अलविदा कहा था जब वे बुलंदियों को छू रही थीं। ऐसी अनेक प्रोफेशनल महिलाएं हैं, जिन्होंने बच्चों की खातिर या तो अपने कैरियर से समझौता कर लिया या फिर वे घर से काम कर रही हैं। उन्हें लगता था कि नौकरी करते हुए वे बच्चों पर ठीक से ध्यान नहीं दे पा रही थीं। ऐसा वे सिर्फ इसीलिए कर पाईं, क्योंकि मां बन कर उन्हें जो पहचान मिली उस के सामने बाकी पहचान या तरक्की उन्हें छोटी लगने लगी थी।
आखिरी में मां के लिए चंद पंक्तियां कहना चाहूंगी ” मां से ऑनलाइन नहीं ऑफलाइन प्यार कीजिए, और सिर्फ किसी एक या खास दिन नहीं हर दिन किया कीजिए “