
Lucknow: 16 वर्षीय राधिका हर माह पीरियड्स (Menstruation) के दौरान 4-5 दिन स्कूल नहीं जाती। इसकी वजह है कि स्कूल में न तो साफ शौचालय (Toilet) है और न ही पानी की पर्याप्त व्यवस्था। यह समस्या सिर्फ राधिका की नहीं, करीब 60 प्रतिशत लड़कियों की है जो इन तमाम दिक्कतों के चलते पीरियड्स में स्कूल नहीं जा पाती हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की रिपोर्ट भी यही बताती है कि देश में हर 5 में से 1 लडक़ी पीरियड्स के समय स्कूल नहीं जाती।
क्वीन मेरी अस्पताल की वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ एवं सेंटर ऑफ एक्सिलेंस फॉर एडोलसेंट हेल्थ की नोडल डॉ. सुजाता देव (Dr. Sujata Dev) के निर्देशन में हुए सर्वे में भी यह बात सामने आई है कि पीरियड्स में लड़कियों के स्कूल न जाने के तमाम कारण है, जिसमें मुख्य वजह साफ-सफाई की व्यवस्था न होना है ।
डॉ सुजाता देव का कहना है कि शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकतर स्कूलों में पर्याप्त और स्वच्छ शौचालय, सैनिटरी पैड के निपटान की सुविधा और पानी की अनुपलब्धता एक बड़ी बाधा है। कई स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय भी नहीं होते, जिससे उन्हें असुविधा होती है। कई बार शिक्षकों (Teachers) और अभिभावकों (Parents) द्वारा भी इस विषय पर खुलकर बात नहीं की जाती, जिससे लड़कियों को अपनी समस्या (Problem) बताने में हिचक होती है।
वहीं ग्रामीण क्षेत्रों (Rural Area) में यह समय लड़कियों के लिए और भी दिक्कत भरा होता है। कई गरीब लड़कियां नैपकिन तक खरीद नहीं पाती। पीरियड्स में कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। वहीं काफी संख्या में परिवार आज भी मासिक धर्म को अपवित्र मानते हैं इस दौरान लड़कियों को सामाजिक व धार्मिक कार्यों से दूर रखा जाता है जिससे लड़कियां खुद को अलग-थलग महसूस करती हैं और स्कूल जाने से कतराती हैं।
डॉ सुजाता देव का कहना है कि यह आंकड़ा चिंताजनक है, क्योंकि इससे लड़कियों की पढ़ाई में रुकावट आती है। पीरियड्स के दौरान स्कूल न जा पाने से उनमें हीन भावना और आत्मविश्वास में कमी आती है। लगातार स्कूल छूटने से वे पढ़ाई में पिछड़ जाती हैं, जिससे उनके प्रदर्शन पर असर पड़ता है और बीच में पढ़ाई छोडऩे की संभावना बढ़ जाती है।
कई अन्य दिक्कतें भी
– 44.5 प्रतिशत के पास इस्तेमाल किए गए पैड के निस्तारण की उचित व्यवस्था नहीं है।
– 49.5 प्रतिशत को ही साफ व निजी शौचालय उपलब्ध हैं।
– 53 प्रतिशत को रैशेज, खुजली और दाने की शिकायतें होती हैं, जिनमें से 37.5 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र से हैं।
– 59.5 प्रतिशत लड़कियां माहवारी के दौरान सामाजिक व धार्मिक प्रतिबंधों का सामना करती हैं।