Opinion

डॉ आम्‍बेडकर की दृष्टि में ‘हिन्‍दुत्‍व’

नीरज तिवारी

भारत (Bharat) के प्रथम कानून मंत्री एवं संविधान सभा के अध्‍यक्ष बाबा साहब डॉ भीमराव आम्‍बेडकर (Dr Bhimrao Ambedkar) के नाम पर इन दिनों हिन्‍दुओं और उनके सनातन धर्म को निशाने पर लिया जा रहा है। मगर डॉ. आम्‍बेडकर का मानना था, ‘पंथों और सिद्धांतों का मिश्रित समूह ही हिन्‍दुत्‍व है।’ उनके जीवन में सबसे बड़ी बाधा हिन्‍दू समाज में व्‍याप्‍त जाति व्यवस्था थी क्योंकि वे जिस परिवार में पैदा हुये थे उसे ‘अछूत’ माना जाता था।

इसलिये उन्होंने जाति व्यवस्था का विरोध करते हुये 14 अक्टूबर 1956 को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने अपने 3.65 लाख समर्थकों के साथ हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया था। मगर उन्‍होंने इस्‍लाम या ईसाई रिलीजन नहीं अपनाया क्‍योंकि वह जानते थे कि ऐसा करने से भारत देश की अक्षुण्‍ता पूरी तरह से भंग हो जायेगी।

वर्ष 1935 में डॉ. आम्‍बेडकर ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि ‘मैं एक हिन्‍दू के रूप में पैदा हुआ क्योंकि मेरा इस पर कोई नियंत्रण नहीं था, लेकिन मैं एक हिन्‍दू रहकर नहीं मरूंगा।’ उन्‍होंने ऐसा किया भी। फिर भी वे हिन्‍दू धर्म को अन्‍य रिलीजन से ऊपर मानते थे। इस्‍लाम में महिलाओं के साथ किये जाने वाले दोयम दर्जे के व्‍यवहार के लिये उन्‍होंने कहा था, ‘मुस्लिम महिलाओं के लिये पर्दे की अनिवार्य व्यवस्था उनको मानसिक और नैतिक पोषण से वंचित करता है।’

वहीं, ईसाई रिलीजन के प्रति उनका मत था कि ईसाइयत द्वारा इस दुनिया में गरीबी एवं पीड़ा को महिमामंडित करने और लोगों को भविष्य का सपना दिखाने का कार्य किया जाता है। वे हिन्‍दू धर्म को जातिवाद अर्थात वर्ण व्‍यवस्‍था के लिये ही कोसते रहे। वे यह मानते थे कि जातिवाद के कारण ही अस्‍पृश्‍य समाज में एकता की भावना का अभाव है।

डॉ. आम्‍बेडकर ने भारतीय समाज में घर और बाहर-दोनों जगह स्त्रियों की बराबरी के लिए संघर्ष किये। जब वे जवाहरलाल नेहरू की सरकार में विधि मंत्री बने तो उन्होंने स्त्रियों को न केवल घरेलू दुनिया में बल्कि उन्हें आर्थिक और लैंगिक रूप से मजबूत बनाने के लिए हिंदू कोड बिल प्रस्तुत किया। यह बिल पास नहीं होने दिया गया।

डॉ. आम्‍बेडकर ने इस्तीफा दे दिया। वे समान नागरिक संहिता को लागू करवाना चाहते थे मगर जिहादी मानसिकता वाले स्‍वयंभू बुद्धिजीवियों ने ऐसा नहीं होने दिया। वे मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर हिन्‍दुओं के अधिकारों की बलि दे बैठे।

डॉ. आम्‍बेडकर ने बाल विवाह, धार्मिक असहिष्णुता, गुलामी की अवधारणा, धर्म के प्रति कट्टर आस्था, समाज में महिलाओं की स्थिति, बहुविवाह और कई अन्य विवादास्पद प्रथाओं के प्रचलन के लिए इस्लाम की आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वे हिन्‍दू धर्म में व्‍याप्‍त कुछ बुराइयों के लिये मुखर थे। फिर भी वे इस्‍लाम को अधिक घातक मानते थे।

डॉ. आम्‍बेडकर ने अपनी पुस्तक ‘थॉट्स आन पाकिस्तान’ में मुस्लिम राजनीति के साम्‍प्रदायिक आधार का विस्तृत वर्णन किया है। इस वर्णन से मुस्लिम राजनीति के दो आयाम दृष्टि-गोचर होते हैं- आक्रामकता और अलगाववाद। उन्‍होंने कहा, ‘सरसरी दृष्टि से देखने पर भी यह बात स्पष्ट हो जाएगी कि मुसलमानों के प्रति हिन्दू मनोवृत्ति और हिन्दुओं के प्रति मुस्लिम मनोवृत्ति में एक मूलभूत आक्रामक भाव विद्यमान रहता है।

हिन्दुओं का आक्रामक भाव एक नई प्रवृत्ति है जिसे उन्होंने हाल ही में विकसित करना प्रारम्‍भ किया है। मुसलमानों की आक्रामक भावना उनकी जन्मजात पूंजी है और हिन्दुओं की तुलना में बहुत प्राचीन काल से उनके पास है। आज जैसी स्थिति है, मुसलमान इस आक्रामक भाव के प्रदर्शन में हिन्दू को बहुत पीछे छोड़े हुये हैं।’

डॉ. आम्‍बेडकर का मत था कि इस्लाम में कुरीतियों को दूर करने की आत्मशक्ति नहीं है। वे स्‍वयं को बदलना नहीं चाहते और हिन्‍दू स्‍वयं में एवं अपने धर्म में और समय के अनुसार, परिवर्तन करने को तत्‍पर रहता है। डॉ. आम्बेडकर ने कभी भी हिन्दुओं की राष्ट्रभक्ति पर भी संदेह नहीं किया। उनका एक और निष्कर्ष था कि आर्य भारत में कहीं बाहर से नहीं आये।

वे अपने शोध के आधार पर कहते थे कि आर्य और द्रविड़, दोनों भारत के मूल वंशज हैं। वे आर्य और द्रविड़ों के बीच बोये गये भ्रांतियों के बीज उखाड़ देना चाहते थे। इसके लिये उन्होंने यह आवश्यक माना कि भारत के लोग अनिवार्य रूप से संस्कृत लिखें-पढ़ें। जब लोग संस्कृत समझेंगे तो कई तरह के भ्रामक प्रचार समाप्‍त हो जाएंगे परन्‍तु डॉ आम्‍बेडकर का यह सपना आज भी प्रतीक्षारत है।

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं।

नीरज तिवारी वरिष्‍ठ पत्रकार एवं लेखक हैं। उनके लिखित कई पुस्‍तके प्रकाशित हो चुकी हैं

सम्‍पर्क: neerajexpress@gmail.com

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button