अटल जी मानते थे बिना विपक्ष के लोकतंत्र अधूरा – प्रो नरेन्दर कुमार
"भारतीय राजनीति में विपक्ष के नेता के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका" पर व्याख्यान का आयोजन

लखनऊ विश्वविद्यालय के लोक प्रशासन विभाग के अटल सुशासन पीठ और काउंसिलिंग एंड गाइडेन्स विभाग द्वारा 21 दिसंबर 2024 को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम डी0पी0ए0 सभागार, लोक प्रशासन विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय में संपन्न हुआ।
इस व्याख्यान का विषय “भारतीय राजनीति में विपक्ष के नेता के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका” था। मुख्य वक्ता प्रोफेसर नरेंद्र कुमार, सेंटर ऑफ पॉलिटिकल स्टडीज, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से थे।
कार्यक्रम की शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी जी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर और दीप प्रज्ज्वलन से हुई। मुख्य वक्ता का स्वागत अटल सुशासन पीठ के संयोजक प्रोफेसर नंदलाल भारती ने पुष्पगुच्छ देकर किया।
प्रोफेसर नरेंद्र कुमार ने अपने व्याख्यान में अटल बिहारी वाजपेयी की विपक्ष के नेता के रूप में भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि उन्होंने भारतीय लोकतंत्र को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अटल जी का मानना था कि लोकतंत्र बिना विपक्ष के अधूरा है।
आज विपक्ष को एक दुश्मन के तौर पर देखा जा रहा है। इस प्रवृत्ति से हमें दूर रहना होगा। अटल जी ने एक बार संसद में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तस्वीर न होने पर उनकी तस्वीर लगवाई। 1970 में नेता विपक्ष को महत्वपूर्ण अधिकार दिए गए। जिसके कारण आज नेता विपक्ष का पद संसद में अत्यंत संम्मानित पद हो गया है। उन्होंने विपक्ष की भूमिका को सकारात्मक दृष्टि से प्रस्तुत किया और सत्ताधारी दल को भी इसकी महत्ता को समझने के लिए प्रेरित किया।
व्याख्यान के दौरान मुख्य वक्ता ने 17वीं शताब्दी में यूरोप में विपक्ष की उत्पत्ति और 1977 में एक संसदीय अधिनियम के माध्यम से भारत में विपक्ष के नेता के पद की मान्यता के बारे में चर्चा की। उन्होंने एक स्वस्थ लोकतंत्र को बनाए रखने में विपक्ष की भूमिका और महत्व पर भी चर्चा की।
अटल दृष्टिकोण
स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका पर विभिन्न प्रतिष्ठित हस्तियों के दृष्टिकोण से चर्चा की गई है, जिनमें स्व. पी वी नरसिम्हा राव और स्वर्गीय राजीव गांधी और अन्य शामिल हैं।
अटल जी का एक प्रसिद्ध कथन, “इतनी ऊंची मत देना कि मैं गैरों को गले न लगा सकूं”, उनके खुले दिल और समावेशी दृष्टिकोण को दर्शाता है। यह आयोजन अटल बिहारी वाजपेयी जी की राजनीतिक विचारधारा और लोकतांत्रिक मूल्यों को समझने और आत्मसात करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास था।
उन्होंने कहा कि विपक्ष का कार्य रचनात्मक आलोचना करना है, लेकिन आज यह प्रवृत्ति विरोध के लिए विरोध तक सीमित हो गई है।
कार्यक्रम में डॉ. नंदिता कौशल, डॉ. सुशील चौहान, रिचा यादव, स्वाति दास, अणिमा शुक्ला, रज्जन मिश्रा, वंदना यादव, रवींद्र वर्मा, स्वरूप किशोर, राजेश कुमार, विनोद कुमार समेत कई शोध छात्र और छात्राएं उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. उत्कर्ष मिश्रा ने किया, और धन्यवाद ज्ञापन काउंसिलिंग एंड गाइडेन्स की निदेशक डॉ. वैशाली सक्सेना गुप्ता ने किया।