100 में से 10 शिशु जन्म समय रोते नहीं
प्रिटर्म बर्थ जटिलताओं से 44.9 प्रतिशत शिशुओं की हो जाती है मौत

Lucknow: जन्म के बाद यदि कोई बच्चा रोता नहीं है तो डॉॅक्टर भी चिंतित हो जाते हैं और बच्चे को हिला-डुलाकर रूलाने का प्रयास करते हैं। माना जाता है कि जन्म के फौरन बाद जब कोई बच्चा रोता है तो वह स्वस्थ है, वहीं यदि कोई बच्चा नहीं रोता है तो उसे कोई दिक्कत हो सकती है।
किंग जार्ज मेडिकल विश्वविद्यालय (KGMU) की बाल रोग विभाग की प्रोफेसर डॉ शालिनी त्रिपाठी के मुताबिक किसी भी बच्चे के जन्म के बाद का एक से दो मिनट का समय गोल्डन मिनट माना जाता है। इस समय अगर बच्चा न रोए तो उसके ब्रेन में ऑक्सीजन नहीं पहुंचती, जिसकी वजह से बच्चे में दिमागी कमजोरी, फेफड़े की समस्या व अन्य दिक्कतें होने का रिस्क बढ़ जाता है। प्रीटर्म बर्थ (Preterm Birth) जटिलताओं के कारण 100 में से 10 बच्चे जन्म के बाद नहीं रोते हैं।
उनका कहना है कि छोटी-छोटी सावधानियां बरत ली जाएं तो बहुत से प्रीटर्म शिशुओं को बचा सकते हैं। आज गांव से लेकर शहर तक सरकारी अस्पताल सक्रिय हैं। सभी संभावित माताएं सरकारी अस्पतालों में ही प्रसव कराएं और प्रसव के तुरंत बाद शिशु को स्तनपान कराएं। छह माह तक सिर्फ स्तनपान कराएं। जन्म के समय शिशु की अच्छे से देखभाल करें। डाक्टर के परामर्श पर ही बच्चे को घर ले जाएं।
स्त्री रोग विभाग व बाल रोग विभाग में बेहतर आपसी समन्वय नवजात की देखभाल में काफी मददगार हो सकता है। यूनिसेफ के सर्वे के मुताबिक 53 प्रतिशत कम वजन वाले बच्चे प्रसव के बाद घर चले जाते हैं। घर पर भी कम वजन वाले व बीमार शिशु का खास ख्याल रखना चाहिए।
उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के मुताबिक 24.5 प्रतिशत शिशु ही जन्म के पहले एक घंटे में स्तनपान कर पाते हैं। इसलिए जरूरी है कि मा-बच्चे को साथ रखें और बच्चे को शीघ्राशीघ्र स्तनपान कराएं। लैंसेट ग्लोब हेल्थ रिपोर्ट 2019 के मुताबिक प्रीटर्म बर्थ जटिलताओं से 44.9 प्रतिशत शिशुओं की मौत हो जाती है। शिशुओं की मौत का दूसरा बड़ा कारण इंट्रापार्टम यानि बच्चे के मां से अलग होने का समय है।
इन छह बातों का रखें ध्यान
1- गर्भधारण से प्रसव पूर्व तक उपयुक्त जांच व इलाज
2- प्रसव के दौरान व जन्म के समय जच्चा-बच्चा पर पैनी नजर
3- नवजात के जन्म के समय देखभाल
4- स्वस्थ शिशु की देखभाल
5- कम वजन व बीमार नवजात की देखभाल
6 जीवित रखने से आगे की देखभाल
अस्पतालों में बन रहे न्यूबार्न केयर कार्नर
स्वास्थ्य मिशन के महाप्रबंधक डॉ सूर्यांशु ओझा ने बताया कि सतत विकास लक्ष्य (SDG) के अनुसार वर्ष 2030 तक नवजात मृत्यु दर 12 प्रति एक हजार कम वजन वाले बच्चों से कम होनी चाहिए। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उत्तर प्रदेश को अधिक काम करने की जरूरत है। इसके लिए प्रयास किया जा रहे है। केजीएमयू के अलावा गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में स्टेट न्यू बार्न रिसोर्स सेंटर स्थापित किए गए हैं। इसके अलावा जिला अस्पतालों में न्यूबार्न केयर कार्नर बनाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस समय प्रदेश में 13 न्यू बार्न इंटेंसिव केयर यूनिट (NICU), 119 सिक न्यूबार्न केयर यूनिट (SNCU) और 410 न्यू बार्न स्टेबलाइजेशन यूनिट (NBSU) सक्रिय तौर पर काम कर रहे हैं। प्रदेश सरकार की लगातार कोशिश है कि कोई भी नवजात इलाज के अभाव में दम न तोड़े।